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समय का स्वर्णिम रथ चलता है,
परिवर्तन के पथ पर दौड़ता है।
समय किसी के लिए नहीं रुकता है,
निर्भय निर्बाध गति से चलता है।
समय किसी के सामने नहीं झुकता है,
अपना मस्तक ऊँचा लिए चलता है।
समय का नहीं जानता जो अर्थ,
समय उसको कर देता है व्यर्थ।
समय बहुत अनमोल, बलवान,
नही है किसी का मित्र न दुश्मन।
समय बलवान का चलता पहिया,
समय का ना कोई बहना ना भैया।
मस्त गति से समय चक्र घूमता,
नहीं किसी की परवाह करता।
समय पर होता सूर्योदय सूर्यास्त,
समय पर होता चंद्रोदय चंद्रास्त।
समय पर सोना समय पर जगना,
सदा समय का सदुपयोग करना।
समय समय पर करता रहता फेर,
समय ईश्वर की दिव्य अनुपम मेहर।
सभी जीव जगत के करते आराम ,
समय नहीं करता पल भर विश्राम।
समय नमाज,बाँसुरी,भक्ति,नर्तन कीर्तन,
समय पूजा,अरदास,जिनवाणी, अजान।
कबीर, रहीम ने समय का यश गाया,
तिरूवल्लुवर ने जीवन सफल बनाया।
‘कल्पेश’ करता सदा समय का सम्मान,
‘रिखब’ पाता निशदिन अनुपम वरदान।
#रिखबचन्द राँका
परिचय: रिखबचन्द राँका का निवास जयपुर में हरी नगर स्थित न्यू सांगानेर मार्ग पर हैl आप लेखन में कल्पेश` उपनाम लगाते हैंl आपकी जन्मतिथि-१९ सितम्बर १९६९ तथा जन्म स्थान-अजमेर(राजस्थान) हैl एम.ए.(संस्कृत) और बी.एड.(हिन्दी,संस्कृत) तक शिक्षित श्री रांका पेशे से निजी स्कूल (जयपुर) में अध्यापक हैंl आपकी कुछ कविताओं का प्रकाशन हुआ हैl धार्मिक गीत व स्काउट गाइड गीत लेखन भी करते हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-रुचि और हिन्दी को बढ़ावा देना हैl
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