
मोहनदास करमचंद गाँधी और इन्दौर का एक नाता ऐसा है जो जीवन पर्यंत हर हिन्दीप्रेमी स्मरण करता रहेगा। 3 जून 1918 को गांधीजी की अध्यक्षता में इंदौर में ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ आयोजित हुआ और उसी में पारित प्रस्ताव द्वारा हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया गया।
इन्दौर में एक बगीचा है विस्को पार्क, जिसे वर्तमान में नेहरू पार्क कहा जाता है, उसी बगीचे में एक स्थान ऐसा भी है जहाँ बैठकर जहाँ बैठकर बापू ने हिन्दी के प्रति अपना स्वप्न राष्ट्रभाषा के रूप में बुना और सम्पूर्ण राष्ट्र में हिन्दी प्रचार का बीड़ा उठाया।
गाँधी जी ने 1918 में इंदौर से ही हिंदी की तरफदारी शुरू कर दी थी। 8वें हिंदी साहित्य सम्मेलन में इस पर चर्चा हुई। गांधी दोबारा अप्रैल 1935 में इंदौर पहुंचे, तब भी मौका हिंदी साहित्य सम्मेलन में अध्यक्षता का था। इसमें गांधी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का समर्थन करते हुए ऐतिहासिक वक्तव्य दिया… ‘अगर हिंदुस्तान को हमें सचमुच एक राष्ट्र बनाना है तो चाहे कोई माने या न माने राष्ट्रभाषा हिंदी ही बन सकती है। हिंदी को जो स्थान प्राप्त है वह किसी दूसरी भाषा को कभी नहीं मिल सकता। हिंदू-मुसलमान दोनों को मिलाकर करीब 22 करोड़ मनुष्यों की भाषा थोड़े बहुत फेर से हिंदी-हिंदुस्तान ही हो सकती है।’
महात्मा गांधी और इन्दौर का यह संबंध सदियों सदी तक स्मरण किया जाता रहेगा।