मुंशी प्रेम चंद और उनके उपन्यास व कहानियाँ

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आज महान उपन्यासकर व कहानीकार मुंशी प्रेम चंद जी का जन्म दिन है। वे अपने समय के महान उपन्यास कार थे। उन्होंने उस समय जो देखा वह लिखा। महान कथाकार और उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपने समय के अनेक विषयों पर अपनी बेबाक लेखनी चलायी. कालजयी पात्रों, चरित्रों, कहानियों और उपन्यासों का सृजन किया. भारत की गुलामी, सामंती शोषण, गैरबराबरी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, बेमेल विवाह, छूआछात, कृषि समस्या,, किसान संकट, मजदूरों की समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त किये और एक बेहतर इंसान और बेहतर समाज बनाने का आह्वान किया और सपना देखा और जीवन पर्यंत इसके लिए पुरजोर संघर्ष किया. उन्होंने 300 कहानियां और 15 से ज्यादा उपन्यास लिखे, नाटक लिखे, कविताएं लिखी और यह सब उन्होंने समाज को और मनुष्य को जगाने के लिए किया।
प्रेमचंद “कलम का सिपाही” बने, हमारे मनुष्यत्व को जगाने और जाग्रित करने के लिए ऐसे सकारात्मक चरित्रों का निर्माण करने पर जोर दिया जो वासनाओं के पंजों में न फंसे, बल्कि उनका दमन करें, और विजयी सेनापतियों की तरह दुश्मनों का संहार करते हुए विजयनाद करते हुऐ निकलें. ऐसे ही चरित्रों का हमारे ऊपर सबसे अधिक प्रभाव पडता है.
साहित्यकारों के बारे में वे लिखते हैं कि” साहित्यकार का लक्ष्य केवल मेहफिल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना नही है,,,, उसका दर्जा इतना न गिराइये, वह देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई भी नही है, बल्कि उनके आगे मशाल दिखाते हुए चलने वाली सच्चाई है.” वे कहते हैं कि साहित्य उस रचना को कहते हैं जिसमें कोई सच्चाई प्रकट की गई हो.
प्रेमचंद हर प्रकार की लूट खसोट, शोषण अन्याय भेदभाव और गैरबराबरी, जुल्मोसितम का खात्मा यानि समाज में आमूलचूल परिवर्तन चाहते थे. कर्मभूमि में वे कहते हैं कि” इंकलाब की जरूरत है पूरे इंकलाब की. ” उन्होंने अपनी रचनाओं में गरीबों, महिलाओं और शोषण के शिकार लोगों को जबान दी, वाणी दी, बोलना सिखाया, जुल्म का विरोध करने का हौंसला प्रदान किया.
अपनी रचनाओं में उन्होंने औरतों और मजदूरों को विद्रोही बनाया, उन्हें विद्रोही चरित्र प्रदान किया. उन्हें दब्बू नही लडाकू बनाया, उन्हें संघर्ष करना सिखाया. उनके अनुसार औरत की समस्या समाज की समस्याओं से निकली है, अतः जब तक समाज व्यवस्था नही सुधरेगी, औरतों की समस्याऐं भी नही सुलझ सकती हैं .
प्रेमचंद कहते हैं कि पक्षपाती लोग कभी स्वराज्य नही ला सकते, वे स्वराज के योग्य नही हैं. हिंदू मुस्लिम एकता और एकजुटता व सौहार्द के बारे में वे कहते हैं कि भारत में हिंदू और मुसलमान एक ही नाव में सवार हैं, डूबेंगे तो दोनों साथ डूबेंगे और पार लगेंगे तो दोनों पार लगेंगे. देश और समाज को बांटने वाली साम्प्रदायिक ताकतें भारतीय नही ,विदेशी हैं.
साम्प्रदायिकता के बारे में वे कहते हैं कि हम तो साम्प्रदायिकता को एक कोढ समझते हैं. हिंदू मुस्लिम एकता को वे स्वराज्य का दर्जा देते हैं .वे कहते हैं कि हम पूंजीपतियों का नही, गरीबों, कास्तकारों और मजदूरों का स्वराज्य चाहते हैं. वे कहते हैं कि स्वराज की लडाई और कोई नही ,स्वयं जनता को खुद लडनी पडेगी.
लेखक के बारे में वे लिखते हैं कि लेखक चारदीवारियों का बंदी नही, पूरी दुनिया उसकी वर्कशाप है, अपनी समस्त रचनाओं में वे लगातार समता और मानवतावाद की वकालत करते हैं, वे कहते हैं कि कला जगाने का माध्यम है, सिर्फ सजाने का नही. वे कहते हैं कि साहित्य का महान लक्ष्य है कि वह उत्थान करे, उदय के लिए प्रेरित करे. जो व्यक्ति अपने को जनता के संघर्षों से जोडता है, वही श्रेष्ठ साहित्य की रचना कर सकता है.
प्रेमचंद शोषण, अन्याय भेदभाव और गैरबराबरी तथा तमाम तरह के अत्याचारों ,बुराईयों और जुल्मोसितम से घृणा करने की बात करते हैं और कहते हैं कि इन से जितनी नफरत होगी, उतने ही उत्कृष्ट साहित्य का सृजन होगा. वे लिखते हैं कि अछूतों की असली समस्या आर्थिक है और उसे सुलझाये बिना अछूत समस्या का समाधान नही हो सकता. आज भी उनके तर्कों में वही दमखम दिखाई देता है.
वे किसानों और मजदूरों का साम्राज्य चाहते थे. यह तथ्य आज भी उतना ही सत्य है क्योंकि किसानों और मजदूरों के राज्य और सरकार व सत्ता के बिना उनका कल्याण संभव नही दिख रहा है, इसी कारण वे तमाम तरह की समस्याओं,,,,, लाभकारी मूल्य न मिलना, किसानों की बदहाली और आत्महत्या का कोई समाधान आजादी के सत्तर सालों में नही निकल पाया है.
आज यदि प्रेमचंद होते तो वे साम्प्रदायिकता, जातिवाद, भ्रष्टाचार,, समाज में बढती जा रही मक्कारियों पर करारी चोट करते. समाज में फैलायी जा रही धर्मांधताओं और अविवेकशीलता व अवैग्यानिकता और श्रध्दांधताओं के परखचे उडाते. गुमराह बुध्दिजीवियों को लताडते, गौ-रक्षकों, लवजिहाद, पलायन, और जुमलेबाजियों पर करारा प्रहार करते और समता, समानता, न्याय, धर्मनिरपेक्षता, आजादी, सच्चे गणतंत्र समाजवाद, किसानों मजदूरों के राज्य, वैग्यानिक संस्कृति, साम्प्रदायिक सौहार्द और तार्किकता और विवेक के साम्राज्य के चैम्पियन लेखक और ध्वजवाहक होते.

#आर. के. रस्तोगी

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