‘गीत गुंजन’ कवि सम्मेलन ने समा बाँधा

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प्रजातंत्र की ज्योति रेखा के रक्षक पत्रकार- सत्तन

मन मेरा सीता है लेकिन उर्मिला-सी हो गई हूँ-नरेंद्रपाल

‘गीत गुंजन’ पुस्तक विमोचन एवं कवि सम्मेलन सम्पन्न

राष्ट्रकवि सत्तन जी को ‘स्वर्णाक्षर सम्मान’ से किया सम्मानित

इंदौर। ‘न इस पार वाले न उस पार वाले, ये आईना दिखाते हैं अख़बार वाले’ ऐसी काव्यांजलि से राष्ट्रकवि सत्यनारायण सत्तन ‘गुरुजी’ ने विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा अभिनव कला समाज में आयोजित ‘गीत गुंजन’ कवि सम्मेलन में समा बाँधा।
आयोजन में बतौर अतिथि पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे, वरिष्ठ संगीतज्ञ अरविन्द अग्निहोत्री सम्मिलित हुए।
सर्वप्रथम अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर कवि सम्मेलन की शुरुआत की, इसके बाद संस्थान के पदाधिकारियों द्वारा अतिथियों का स्वागत एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर अभिनंदन किया गया।
इस अवसर पर मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ द्वारा संपादित ‘गीत गुंजन’, जिसमें देश के पचास से अधिक गीतकारों के गीतों का संग्रह है, पुस्तक का विमोचन हुआ।
आयोजन में हिन्दी कवि सम्मेलन के शताब्दी की ओर अग्रसर होने के उपलक्ष्य में संस्थान द्वारा राष्ट्रकवि सत्यनारायण सत्तन ‘गुरुजी’ को स्वर्णाक्षर सम्मान से सम्मानित किया गया।

काव्य पाठ की औपचारिक शुरुआत रीवा के गीतकार संदीप सांदीपनि ने ‘जब-जब मुझको याद है गाँव में बीता बचपन, मेरी आँखों में फिरता है अपने घर का आँगन’ जैसे गीत सुना कर की, इनके बाद धरमपुरी से आए कवि महेन्द्र पँवार ने ‘अपनी तरह के हम हैं फक्कड़ स्वभाव वाले, अपनी जगह किसी भी दरबार में नहीं है’ मुक्तक सुनाते हुए अपने गीतों तक पहुँच कर गीत उत्सव में माहौल बना दिया। रानी रूपमती की नगरी मांडव से पंकज प्रसून ने राम और सीता के संवादों का दृश्य उपस्थित करते हुए अपने गीत सुनाए। तत्पश्चात, इंदौर के लाड़ले कवि गौरव साक्षी ने ‘एक उम्मीद के सहारे पर, दीप रखते हैं रोज़ द्वारे पर। काश! फिर लौट कर वो आ जाए, नर्मदा के उसी किनारे पर’ और शिव गीत से समा बाँध दिया।
नैनीताल से आई कवयित्री गौरी मिश्रा ने इंदौरी पोहे-जलेबी की तारीफ़ में मुक्तक पढ़ते हुए अपने काव्य पाठ का आरंभ किया, फिर ‘भाषा के माथे पर भावों की चंदना, नित्य शब्द सुमन से करते हैं शुभ अर्चना। अपनी वाणी कल्याणी की अभिनंदना, आओ गाएँ सब मिलकर हिन्दी वंदना’ गीतों से विश्व हिन्दी दिवस की सार्थकता सिद्ध करते हुए प्रेम, शृंगार के गीतों से कवि सम्मेलन को गतिशील बना दिया। सैंकड़ो श्रोताओं ने गौरी के गीतों का लुत्फ़ उठाया। इनके बाद केशरिया जी से इंदौर आए प्रसिद्ध गीतकार नरेंद्रपाल जैन ने अपने गीतों की दस्तक से कवि सम्मेलन का शिखरकलश स्थापित किया। उन्होंने गाँव और देहात के गीतों का चित्र खींचते हुए पढ़ा कि ‘सात फेरों के वचन की क्यों परीक्षा हो रही है, माँग में सिंदूर की अब क्यों प्रतीक्षा हो रही है!’ और ‘मन मेरा सीता है लेकिन उर्मिला-सी हो गई हूँ’ जैसे गीतों से श्रोताओं की आँखों को भिगो दिया। श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट इस बात का प्रमाण दे रही थी कि ‘गीत गुंजन’ जैसे गीत उत्सव में हिन्दी के असल गीत सुने जा रहे थे। कवि सम्मेलन का संचालन इंदौर के उम्दा कवि अंशुल व्यास कर रहे थे, उनके अनुप्रास के छंद कवि सम्मेलन में ऊर्जा का प्रवाह कर रहे थे।
हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता एक दूसरे के पूरक हैं और गीत गुंजन के माध्यम से माँ अहिल्या की भूमि साहित्यिक मनीषियों का अभिनंदन कर रही थी।
आयोजन में स्टेट प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल, वुमन्स प्रेस क्लब की अध्यक्ष शीतल रॉय, मातृभाषा उन्नयन संस्थान की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ.नीना जोशी, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शिखा जैन, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य नितेश गुप्ता, जलज व्यास, स्टेट प्रेस क्लब के महासचिव रवि चावला, कोषाध्यक्ष कमल कस्तूरी, सोनाली यादव, आकाश चौकसे, अजय भट्ट, विजय गुंजाल, राकेश द्विवेदी, श्रद्धा गुप्ता, संजय रोकड़े अनवरत थियेटर के नितेश उपाध्याय, गफ़्फ़ार खान, विनीत शुक्ला आदि ने अपनी उपस्थिति से गीत गुंजन में गीतों का लुत्फ़ उठाया।

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