क्यों नहीं समझ रहे हो मानव मेरी अजाब को,
आँचल फैला के माँग रही हूँ आफताब को।
क्यों सोच रहा है मानव की हम अग्यार है,
इस्तिफाक से नाजिश कर तोड़ दिया साथ को।।
क्या मिला तुम्हे हमे अख्ज कर के ज़माने में,
कल्ब तोड़ के गिरिया हम मानव नाफहम।
सोच रहा है कि जागीर मिल गया हमे,
खुदा देख रहा है कि तू क्या किया है सहन।।
कल्ब मेरा आज आजर्दाह है मानव,
सुन्दर आशियाना बना के था डाबर के पास।
शिकारी बनके आके आसिम बादिया दी,
आग लगा दी जंगल में आ गए सब घर के पास।।
आफताब के निकलने से भी छा गईं अब्र,
खुदा तू ही बता मानव की खिदमत कैसे करे।
मैं तो आसूदाह नहीं की मानव को कमर दू,
इल्म हूँ मानव मैं बस तेरे शिदत कैसे करे।।
#राकेश कुमार चतुर्वेदी
परिचय : राकेश कुमार चतुर्वेदी की जन्मतिथि-२० फरवरी १९९६ तथा जन्म स्थान-जमनीडीह हैl आपका वर्तमान निवास छत्तीसगढ़ के महासमुंद स्थित जमनीडीह में ही हैl छत्तीसगढ़ राज्य के शहर भवरपुर निवासी श्री चतुर्वेदी अभी स्नातक में अध्ययनरत हैंl लेखन विधा-ग़ज़ल,गीत तथा हाइकु हैl आपके लेखन का उद्देश्य-समाज को जागरूक करना हैl