मैंने खुशी को पास बुलाना चाहा,
पर वह न आई कसम खाकर।
मैंने खुशी को कलियों में खोजा,
पर उपवन ले गया चुराकर।
मैंने खुशी को नदियों में खोजा,
पर लहरें ले गई बहाकर।
मैंने खुशी को बरखा में खोजा,
पर रिमझिम बूँदे ले गई इतराकर।
मैंने खुशी को खेतों में ढूँढा,
पीली सरसों ले गई मुस्कुराकर।
हार-थक मैंने खुशी से पूछा,
तुम क्यों न आ रही झूम कर।
हंस कर खुशी ने राह दिखाई,
वह मुस्कुराई खिलखिला कर।
ऐ बंदे नन्हें मुन्नों को प्यार कर,
असहाय विकलांगों में खोज डूबकर..
फिर मैं आऊंगी तेरे घर दौड़कर।।
#डॉ.अंजुल कंसल ‘कनुप्रिया’
परिचय : इंदौर में निवासरत डॉ.अंजुल कंसल ‘कनुप्रिया’ की शिक्षा एमए(आर्कलाजी) सहित बीएड,एमए(हिन्दी साहित्य) और पीएचडी भी है। लिखावट सुधार आपका कार्यक्षेत्र है एवं कैलीग्राफी भी सिखाती हैं।कविता सहित लघुकथा और नाटक लेखों की रचना में सक्रियता है। आकाशवाणी इंदौर से कविताओं एवं वार्ताओँ का प्रसारण हो चुका है। अनुगूंज काव्य, कथाशतक के अतिरिक्त और भी संग्रह छप चुके हैं। दिव्य साहित्य गौरव सम्मान, भोपाल द्वारा माहेश्वरी एवं शिव सम्मान, कृति कुसुम सम्मान और शिलाँग में डां.महाराज कृष्ण जैन सम्मान भी आपने पाया है। कुछ पुस्तकों का सम्पादन भी किया है। आप लेखिका संघ,हिन्दी परिवार आदि संस्था ओं से जुड़ी हुई हैं।