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गुज़रा हुआ ज़माना,जब-जब जहन में आए।
दिल फिर मचल के झूमे,बचपन के गीत गाए॥
जाने खता हुई क्या,वो क्यों ख़फा हैं ऐसे।
जब भी मिले हैं मुझसे,नज़रें नहीं मिलाए॥
कानों में लंबे झुमके,होंठों की तेरी लाली।
माथे की तेरी बिंदिया तारों-सी जगमगाए॥
देखी जो तेरी सूरत,सब-कुछ मैं भूल बैठा।
इक ख़्वाब वस्ल का आँखों में झिलमिलाए॥
जो भी मिला है मुझको लूटा है सबने मिलकर।
रिश्ते कहाँ किसी ने,दिल से कभी निभाए॥
तुम लौट के सनम अब,इस घर में चली आओ।
तन्हाई का ये आलम,पल-पल बड़ा सताए॥
क़ातिल का नाम कैसे,अपनी ज़ुबाँ पे लाऊं।
मुझ पर दग़ा के खंज़र,अपनों ने ही चलाए॥
कैसे कहूँ कि तुम ही,मुज़रिम इस प्यार के हो।
मैं भी था मुस्कुराया,तुम भी थे मुस्कुराए॥
ये जिंदगी है उसकी,जीने दो खुल के उसको।
उसको पसंद जो हो, उससे वो दिल लगाए॥
#विवेक चौहान
परिचय : विवेक चौहान का जन्म १९९४ में बाजपुर का है। आपकी शिक्षा डिप्लोमा इन मैकेनिकल है और प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी में नेपाल में ही कार्यरत हैं। बतौर सम्मान आपको साहित्य श्री,साहित्य गौरव,बालकृष्ण शर्मा बालेन्दु सम्मान सहित अन्य सम्मान भी मिले हैं। आपके सांझा काव्य संग्रह-साहित्य दर्पण,मन की बात,उत्कर्ष की ओर एवं उत्कर्ष काव्य संग्रह आदि हैं। आप मूल रुप से उत्तराखंड के शहर रूद्रपुर(जिला ऊधमसिंह नगर) में आ बसे हैं।
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