पीछे मुड़कर देख पथिक तू कहां चला है, सोचकर गंभीर तू कहाँ चला है।
याद कर अपनी मंजिल जो ठानी थी,
कर पल-पल को याद तू,जहां खड़ा है।
भौतिकताओं के बीच में तू खो चुका है, रोटी-पानी की कोशिश में जड़ चुका है।
कर याद गर रास्ता जो तू चल चुका है,
क्या है तेरी मंजिल,क्या है तेरा रास्ता।
संसार के जंगल में तू खो चुका है, तू खुद का अस्तित्व भी भूल चला है।
आइने में देख तू खुद का चेहरा,
क्या तूझे तू खुद को नजर आता है।
तू बस चलना जानता,खाना जानता, उद्देश्य तेरे जीवन का तू भूल चुका है।
बस तू चला ही चला है,रुका कहां है, मशीन की तरह,कोल्हू के बैल की तरहा।
मुड़ तू सकता नहीं,रुक तू सकता नहीं, ठहर थोड़ी देर एक जगह,कर सोच-विचार।
कहाँ जाना था कहाँ आया है क्या पाया है,
क्या ये ही तेरी मंजिल या ठिकाना है।
सोचकर गंभीर हो,तुझे क्या पाना है, ठानकर-मानकर प्रण कर ले आज।
कर प्रतिज्ञा जीवन यूं ही न हो बेकार,
कुछ कर कि जीवन तेरा हो जाए साकार।
परिचय : सहायक प्राध्यापक (पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान) डॉ. किशोर जॉन मध्यप्रदेश के इंदौर में ही रहते हैंl वर्तमान में विशेष कर्त्तव्य अधिकारी के पद पर अतिरिक्त संचालक(उच्च शिक्षा विभाग,इंदौर संभाग) कार्यालय में इंदौर में पदस्थ हैंl पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान सहित वाणिज्य एवं व्यवसाय प्रबंध में आप स्नातकोत्तर हैंl आपको 23 वर्ष का शैक्षणिक एवं प्रशासकीय अनुभव है तो, राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय स्तर पर 30 से अधिक शोध-पत्र प्रस्तुत एवं प्रकाशित किए हैं, एवं 3 पुस्तकों के सम्पादक भी रहे हैंl
सर जी बहुत खूब