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पर नारी की उम्र देख नर रिश्ते गढ़ते।
माता,बहना या कि बेटियाँ प्राय: कहते॥
साली-जीजा रूप बहन-भाई के जैसे।
देवर-भाभी लगें पुत्र- माता हों ऐसे॥
परियों में भी मातृ रूप के दर्शन मिलते।
कहाँ गया आधार कि सारे रिश्ते हिलते॥
रिश्तों को फिर लीक वही अपनाना होगा।
अवध न जाए हार,अवधपति!आना होगा॥
अपनी माता बहन बेटियाँ या परिणीता।
हर नारी में देख इन्हीं सम पावन रिश्ता॥
नर-मादा में बँटो नहीं पशुवत हो भाई।
जग को सबसे पूर्व,हमीं ने राह दिखाई॥
फिर तेरा मन नारी देख क्यों ललचाता है ?
क्यों मानवता छोड़,निरा पशु बन जाता है ?
रिश्तों से ये दोष,तुरंत मिटाना होगा।
अवध न जाए हार,अवधपति!आना होगा॥
#अवधेश कुमार ‘अवध’
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