न करो तुम दोहन मेरा ,
न करो तुम दूषित मुझको |
हे ! मानव मै कोई वायरस नहीं
प्रकृति का संदेश है तुझको ||
सदियो से मनमानी करता आया ,
मनमुटाव मुझसे करता है आया |
जल और वायु जो जीवन उपयोगी ,
उनको सदा तू दूषित करता आया ||
धरा और गगन को तूने न छोड़ा ,
उच्चे उच्चे शिखरो को न छोड़ा |
उनको काट कर सुरंग बनाई ,
जीव जन्तुओ को भी न छोड़ा ||
किए तूने नये नये कारनामे ,
गगन पर किए नये फसाने |
चाँद मंगल को भी है घेरा ,
बनाना चाहता है उन पर डेरा ||
सागर का भी मंथन किन्हा,
उसमे रहने वालो का जीवन छीना |
इसमे भी बारूद की सुरंग बिछाई ,
मुश्किल हो गया उनका जीना ||
नये नये अन्वेष्ण है करता ,
अपनी कब्र खुद ही खोदता |
फिर करता प्रकृति पर दोषारोपण ,
नासमझी के काम तू है करता ||
दे रही है प्रकृति तुझको चेतावनी ,
बन्द कर मानव तू अपनी शैतानी |
वरना ये वायरस तुझको खा जायेगा,
फिर तू अपने हाथ मलता रह जायेगा ||
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम