जो चलते हो नंगे पाँव,
जगत कल्याण के लिए।
एक बार तो जयकारा लगाओ,
विद्यासागर मुनिराज के लिए।।
गांव गांवओ में जाकर,
जैन धर्म की ज्योत जलाई।
और जैन धर्म की चर्चा,
घर घर में पहुंचे।
ऐसे त्यागी तपस्वीय साधु के लिए।
एक बार तो जयकारा लगाओ,
विद्यासागर मुनिराज के लिए।।
जैन धर्म को बचने की जब,
सारी आशाएं टूटी।
तो चारो दिशाओ में जाकर,
जैन धर्म की लाज बचाई।
ऐसे ज्ञानी तपस्वीय गुरुवर के लिए।
एक बार तो जयकारा लगाओ,
विद्यासागर मुनिराज के लिए।।
जब पंथवाद की बाते,
चारो दिशाओ में गूंजी।
तो आगाम का इन्होने,
मतलब सबको समझया।
गुरु ज्ञानसागर के शिष्य ने
जैन धर्म को बचा लिया।
एक बार तो जयकारा लगाओ,
विद्यासागर मुनिराज के लिए।।
जो चलते हो नंगे पाँव,
जगत कल्याण के लिए।
एक बार तो जयकारा लगाओ,
विद्यासागर मुनिराज के लिए।।
आचार्यश्री के 53वे दीक्षा दिवस पर संजय जैन द्वारा रचित भजन उनके चरणों मे समर्पित है।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)