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चलो जिंदगी वक्त की सड़क पे,
कुछ खेल करते हैं।
मिले जो रास्ते पे,
उनसे कुछ मेल करते हैं।
कुछ तो मिलते ही,
बेजान दिखते हैं।
कुछ तो धोखा है यहाँ,
जो बिखरे पड़े हैं राह पर।
आओ इनसे रुककर बातें,
दो-चार करते हैं।
कुछ तो सड़क पे ऐसे मिले,
जैसे सब हो अपना।
इस विश्वास पे ही तो,
फरेब का जाल रचते हैं।
लूट है यहाँ वक्त की सड़क की,
हम भी रफ्तार भरते हैं।
रुकने का कहाँ करें भरोसा,
यहाँ तो भरोसे पे ही वार करते हैं॥
#प्रभात कुमार दुबे (प्रबुद्घ कश्यप)
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