(माँ नर्मदा की जयंती विशेष)
सुनो सुनाता माँ की कहानी,
नर्मदा मैया चिरकाल कुंवारी।
जब हुई धरती पे पापों की वृष्टि,
तब विपरीत हो गई सारी सृष्टि।
काल में डूबी मानव की नैया,
रूठ गयी थी म्हारी धरती मैया।
सूख गया था संसार ये सारा,
सारी ऋतुओं ने मुंह था मोड़ा।
त्राहि-त्राहि की ध्वनियां उठ गई,
ऋषि-मुनियों में भगदड़ मच गई।
फिर महिमा गान हुआ शिव जी का,
आसन डोल गया त्रिपुरारी क।
तब उठे कैलाशी बाबा अविनाशी,
तांडव ने बदली पृथ्वी की राशि।
तीन दिवस की रौद्र की अग्नि,
सती के संग आए जमदाग्नि।
प्रार्थनापूर्वक शांत हुए शिव,
अंग-अंग से निकला था विष।
कुछ दो बूंदों से इक कन्या प्रकटी,
नर्म से सुख और दा से ददाती।
शिव बोले तुम हो पाप नाशिनी,
अनंत युगों तक अमरकंटवासिनी।
अनन्य भक्तों की इष्ट देविका,
शाश्वत सत्य की हो भूमिका।
हर तट पर तेरे देवी देव विराजे,
दर्शन कर भक्ति में हम झूमें-नाचे।
कपिल मुनि का हाथ पकड़कर,
तुम निर्मल धारा बन जाती हो
बिंदु से उदगम होकर माँ रेवा,
तुम सिंधु-सी बन जाती हो।
ऐसी ही बन के करूणावतारी,
रहना माँ हम बच्चों की प्यारी
*त्वदीय पाद पंकजम् नमामि देवी॥
धरतीपुत्र'
परिचय : रजनीश दुबे’धरतीपुत्र'
की जन्म तिथि १९ नवम्बर १९९० हैl आपका नौकरी का कार्यस्थल बुधनी स्थित श्री औरोबिन्दो पब्लिक स्कूल इकाई वर्धमान टैक्सटाइल हैl ज्वलंत मुद्दों पर काव्य एवं कथा लेखन में आप कि रुचि है,इसलिए स्वभाव क्रांतिकारी हैl मध्यप्रदेश के के नर्मदापुरम् संभाग के होशंगाबाद जिले के सरस्वती नगर रसूलिया में रहने वाले श्री दुबे का यही उद्देश्य है कि,जब तक जीवन है,तब तक अखंड भारत देश की स्थापना हेतु सक्रिय रहकर लोगों का योगदान और बढ़ाया जाए l