एक बेटा ऐसा भी 

0 0
Read Time12 Minute, 1 Second
manila kumari

शीला के माता पिता शहर में रहते थे l उसकी शादी गाँव के एक सम्पन्न परिवार में हुई l उसके पति घर के इकलौते बेटे थे l वह उस परिवार में बहुत खुश थी l शादी के कई वर्षों बाद उसको एक बेटा हुआ जो उसके  कई जगह मन्नत माँगने और कई अच्छे डाक्टरों को  दिखाने के बाद  हुआ l शीला ने अपने बेटे का नाम राजा रखा l राजा के जन्म के दो वर्ष बाद ही उसकी बहन रीना का जन्म हुआ l शीला राजा को बहुत प्यार करती थी l वह घर में सभी का लाडला था l उसकी कही हर बात बचपन से ही पूरी की जाती  है इसलिए वह जिद्दी और गुस्सैल भी था l एक बार बारह वर्ष की उम्र में मामा घर जाने पर राजा ने वहीं रहने की जिद्द ठान ली क्योंकि शहर में  घर बैठे ही सब जरूरत पूरी हो जाती थी l शीला और उसके पति ने कभी राजा के किसी बात को मना  नहीं किया था, सो उसे मामा घर में ही रहने दिया और वहीं उसकी पढ़ाई की व्यवस्था की l शादी की उम्र होने पर जब राजा से उसकी शादी के बारे में पूछा गया, तो उसने शहर की लड़की से शादी करने  की बात की l शीला और उसके पति ने उसकी शादी शहर की लड़की से ही कर दी l राजा अपने माता पिता का इकलौता और लाडला होने के कारण कोई नौकरी भी नहीं करता था l वह अपने ससुराल में अपनी पत्नी के साथ रहने लगा l शहर में उसके ससुराल में उसकी बूढ़ी सास और एक साला रहते थे l कमरे भी दो ही थे l राजा से मिलने का जब भी मन करता शीला अपने पति के साथ उससे मिलने आ जाती थी l राजा को तो शुरू से काम करने की आदत नहीं थी, सो ससुराल में दिन भर वह अपने साला के कमरे में टी वी देखता रहता था l राजा का साला राजू  एक कंपनी में काम करता था l वह रात को ही घर आता था l उसके ऊपर परिवार की दो बहनों की शादी का कर्ज था, जिसे चुकाने की लिए वह रात दिन मेहनत करता था l इधर राजा को एक बेटा हुआ,  उसके ऊपर और खर्च बढ़ गया l इधर राजा के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया, ऊधर राजू  दिन रात मेहनत करते हुए घर का खर्च चलाने लगा l अब तक राजा की बहन की उम्र भी शादी के लायक हो गयी l उसके लिए रिश्ते आने लगे, पर राजा को तो केवल अपने सुख की पड़ी थी वह गाँव नहीं जाता था जबकि शीला कई बार उसे मेहमानों के आने पर उसके ससुराल गाँव के किसी व्यक्ति को बुलाने भेजती थी l

राजू  ने दिन रात परिश्रम करते हुए अपना कर्ज चुका दिया, फिर परिवार की रजामंदी से शादी कर ली l शादी के बाद नई दुल्हन आयी, तो राजा के साला ने एक गाड़ी खरीदी ताकि वह अपनी  पत्नी शुभ्रा, जो कॉलेज में पढ़ती थी को छोड़ कर नौकरी कर सके l राजू  को बाइक में घूमते देख राजा ने अपने पिता के रिटायरमेंट के पैसे से एक गाड़ी खरीदवा लिया और तेल खर्च अपने पिता से लेकर बाइक पर घूमने लगा l इधर राजा की बहन की शादी तय हो गयी पर वह शादी में अपनी पत्नी के साथ रस्म निभाने के लिए एक दिन के लिए गया और अगले ही दिन वापस ससुराल आ गया l शीला और उसके पति जब तक खेती करने सकते थे, बेटे की हर जरूरत को पूरा करते थे l खाने और इलाज  का खर्च तो उसका साला राजू  उठाता था l राजा कभी अपने ससुराल में रहते हुए अपने बच्चे तक का खर्चा नहीं उठाता था l उसकी सास समय समय पर दामाद को तरह तरह के पकवान बना कर खिलाती थी l इधर नई बहू शुभ्रा के आने पर उसने रसोई का काम सँभाला l वह भी घर के काम निपटा कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देती थी l कमरे में राजा के टी वी देखने के कारण उसे पढ़ने में परेशानी होती थी, तो वह छत पर बैठकर पढ़ाई करती थी l
जिस तरह राजू  दिन रात मेहनत करता था घर के खर्च चलाने के लिए, उसी तरह शुभ्रा  भी दिन रात मेहनत करती थी अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी करने के लिए l आख़िरकार शादी के पाँच साल बाद, एक बेटा होने के बाद शुभ्रा की  नौकरी लग गयी, वो भी राजा के घर से तीन गुनी दुरी पर स्थित एक सरकारी  विद्यालय में l वह प्रति दिन घर के काम और अपने बेटे  रोहन को स्कूल भेजने के बाद स्कूल जाती  थी और घर पर आकर घर के सारे काम करती थी l
इधर  राजा के पिता बूढ़े हो चले थे, अपना काम भी नहीं कर पाते थे l उसकी माँ भी किसी तरह काम करती थी l अब राजा का खर्च वहन करने की क्षमता उसके माता पिता में नहीं थी l वे तो अपना काम भी नहीं कर पा रहे थे l बूढ़े माता पिता को गाँव में देखने वाला भी कोई नहीं था l इधर राजा का बेटा  राम भी बड़ा हो गया था, पर कोई गाँव जाना पसंद नहीं करता था l रोहन, राम  से छोटा होने के बावजूद पढ़ाई पूरी कर नौकरी करने लगा l रोहन और राम के  उम्र में अंतर चार साल का था, पर काम नहीं करने के कारण राजू ने राम की शादी से पहले  अपने बेटे रोहन की शादी अच्छे घराने में कर दी l नई बहू  सुमन ने इस घर में यह चलन देखा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि जो मेहनत करता है, वही मेहनत किए जा रहा है और जो ठाठ से है वो बिना काम किए ही ठाठ से रह रहा है l उसने अपनी सास शुभ्रा से इस बारे  में पूछा तो उसने कहा कि  अबतक किसी ने भी इस बारे में कुछ नहीं कहा तो मैंने भी कभी कुछ नहीं कहा l तब सुमन ने कहा कि यह तो बहुत गलत है कि एक ओर बेटा सुख से है और उसे अपने बूढ़े माता पिता की भी परवाह नहीं और दूसरी ओर बेटा परिवार सहित मेहनत कर रहा है और माँ, बेटी -दामाद और उसके बच्चे आराम से हैं l शुभ्रा ने सुमन को कहा कि इस समस्या का कोई हल भी तो नहीं है l सुमन ने अपनी सास को समझाया कि आप दादी से कहो कि रोहन को उसकी कंपनी की तरफ से एक फ्लैट मिल  रहा है, उसमें रहने के लिए आप,  पिताजी, रोहन और मैं जा रहें हैं l अगले महीने से वहीं रहेगें l शुभ्रा की सास का यह सुन कर रोना धोना शुरू हो गया कि  मेरा बेटा मेरे बुढ़ापे में मुझे अकेला छोड़ कर जाना चाहता है l शुभ्रा ने समझाया माँ आप अकेले कहाँ हो?  आपके साथ बेटी दामाद और उसका परिवार तो है l शुभ्रा की सास ने कहा कि  वो तो कुछ भी काम नहीं करते हैं l मैं कैसे घर का काम और घर का खर्च चलाऊँगी l शुभ्रा ने कहा कि सब अपने आप हो जाएगा आप देखते रहिए l
अगले महीने राजू अपनी माँ को छोड़ कर सपरिवार अपने बेटे के साथ रहने चला गया l
इधर राजा को वक्त पर खाना भी नहीं मिलता था, उसकी पत्नी को काम करना पड़ रहा था, इसलिए वह किचकिच करने लगी थी l राजा की सास भी अब कुछ काम नहीं करती थी l घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया l राजा अब अपने गाँव से सब्जियाँ लाने जाता और वहीं खाकर आता था l घर से बेटे और बहू के जाने के बाद राजा की सास को शीला का दर्द भी समझ आ रहा था कि  जीवन भर जिसके आस में जिया, वही अपने सुख के लिए छोड़ कर चला जाए, तो कैसा लगता है l  उसका मन अब किसी काम को करने में नहीं लगता था l इधर बेटी को घर का सारा काम करना पड़ता तो उसकी बकझक माँ से भी हो जाती थी l अब तक बिना कुछ किये ही सब कुछ शान्ति से गुजर रहा था, अब वैसी स्थिति नहीं रही l अब खर्चे के बारे में राजा को पता चलने लगा l शीला भी अब दो जगह का खर्चा उठाने में असमर्थ थी l जब सब तरफ से आमदनी बंद हो गया और राजा को काम करना पड़ने लगा, तो वह अपने गाँव में रहने लगा l गाँव में उसको काम नहीं करना पड़े, इसलिए अपनी पत्नी और बच्चे को भी ले गया l राजा की सास को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था कि अपने तो अपने ही होते हैं l उसने राजू को घर वापस आने को कहा l सुमन को सारी बातें पता थी, सो उसने अपनी सास को घर वापस आने के लिए मना  लिया और सब वापस घर आ गए l इधर शीला को अपनी गलती का पता चल गया कि अपने बच्चों को हमेशा उनके दायित्व को निभाने लायक बनाना चाहिए, अत्यधिक लाड प्यार से बिगड़ना नहीं चाहिए, नहीं तो जीवन भर बड़ा होने के बावजूद बच्चा कोई काम नहीं करेगा, वह दूसरों पर ही निर्भर रहेगा l
#डॉ मनीला कुमारी

परिचय : झारखंड के सरायकेला खरसावाँ जिले के अंतर्गत हथियाडीह में 14 नवम्बर 1978 ई0 में जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में हुआ। उच्च शिक्षा डी बी एम एस कदमा गर्ल्स हाई स्कूल से प्राप्त किया और विश्वविद्यालयी शिक्षा जमशेदपुर वीमेन्स कॉलेज से प्राप्त किया। कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में पत्र प्रस्तुत किया ।ज्वलंत समस्याओं के प्रति प्रतिक्रिया विविध पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। प्रतिलिपि और नारायणी साहित्यिक संस्था से जुड़ी हुई हैं। हिन्दी, अंग्रेजी और बंगला की जानकारी रखने वाली सम्प्रति ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में पदस्थापित हैं और वहाँ के छात्र -छात्राओं को हिन्दी की महत्ता और रोजगारोन्मुखता से परिचित कराते हुए हिन्दी के सामर्थ्य से अवगत कराने का कार्य कर रहीं हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

गलत आंकलन

Sun Dec 23 , 2018
एक सेठ ने एक लड़के को इस शर्त पर नौकर रख लिया कि यदि आपने ईमानदारी से काम किया तो 1000 रुपये महीना वेतन मिलेगा। यदि ईमानदारी से काम नहीं किया तो दस दिन के बाद बिना कोई वेतन दिये यहाँ से भगा दिये जाओगे। लड़के ने बड़ी ईमानदारी से […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।