हुई लकदक लताएं 

0 0
Read Time2 Minute, 49 Second
satish
उत्तरायण हो गए हैं सूर्य जब से,शीत कम करने लगीं अपनी हवाएं।
छँट रही है धुंध सब वातावरण से,फूल कलियों से हुई लकदक लताएं॥
तेज होती धूप की बढ़ती तपन से,बर्फ की चादर पिघलती जा रही है।
शीत से होती शिथिल इस ज़िन्दगी में, अब नई उर्जा नवल गति आ रही है॥
एक मुद्दत बाद कुछ कलियाँ खिलीं है, एक मुद्दत बाद महकी फ़जाएं…।
छँट रही है धुंध सब वातावरण से,फूल कलियों से हुई लकदक लताएं…॥
छोड़कर नीरस सफ़ेदी पर्वतों ने,कर लिया है केसरी परिधान धारण।
केसरी होती दिखी हमको नदी भी,पर्वतों के केसरी प्रतिबिम्ब कारण॥
निर्झरों ने साज से संदेश भेजा,पंछियों को गीत कोई गुनगुनाएं…।
छँट रही है धुंध सब वातावरण से,फूल कलियों से हुई लकदक लताएं…॥
आगमन ऋतुराज का जब हो रहा है,क्यूँ नहीं श्रृंगार हो सारी धरा का।
देखना उत्सव बड़ा ही भव्य होगा,भव्य होगा रूप उस प्यारी धरा का॥
आइए स्वागत करें मिलकर सभी हम, प्रेम के उल्लास के नगमें सुनाएं…।
छँट रही है धुंध सब वातावरण से,फूल कलियों से हुई लकदक लताएं…॥
चाहता हूँ मैं बनूँ ऋतुराज अब के,तुम धरा बन प्रेम की श्रृंगार करना।
मैं करूँ प्रस्ताव अपनी प्रीत का जब,तुम लजाना और फिर स्वीकार करना॥
ज़िन्दगी भर के सफ़र में साथ की हम, ऋतु वसंती की चलो कसमें उठाएं…।
छँट रही है धुंध सब वातावरण से,फूल कलियों से हुई लकदक लताएं…॥
        #सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

प्यारा बसंत

Mon Jan 22 , 2018
  गीतों का मल्हार लिए, फूलों का श्रंगार लिए। खिल गए फूल अनन्त, आ गया देखो प्यारा बसंत॥ फूलों से खेत हो रहे हरे-भरे, पक्षी गीत गा रहे भावना भरे। नर-नारी और झूमे साधू सन्त, आ गया देखो प्यारा बसंत॥ नदियाँ फूलों से श्रृंगार करे, धरा भी किरणों से मांग […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।