दिल जिस से लगा
उसे पा न सका।
पाने की कोशिश में
बदनाम हम हो गये।
फिर जमाने वालो ने
खेल मजहब का खेला।
जिसके चलते हम दोनों को
अलग होना पड़ा।।
मोहब्बत करने वाला का
क्या कोई मजहब होता है।
दोनों का खून क्या
अलग अलग होता है।
क्यों मोहब्बत में मजहब
बीच में ले आते है लोग।
और सच्ची मोहब्बत का
गला घोंट देते है क्यों।।
स्नेह प्यार से जीने में क्या
मजहब बाधा बनता है।
जब रब ने दोनों को
एज दूजे से मिलाया है।
तो क्यों नफरत की आग
प्रेमियों के दिलों में लागते हो।
और अपनी राजनीति का
जहर मोहब्बत में फैला देते हो।।
जय जिनेन्द्रा देव
संजय जैन मुम्बई