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हर बाधा का हल निकलेगा,
आज नहीं तो कल निकलेगा।
थककर सोया है जो सूरज,
वो निश्चित ही कल निकलेगा।
कलियाँ भी महकेंगी उस दिन,
जिस दिन उनमें दल निकलेगा।
कर्म करो नेकी का जग में,
उसका मीठा फल निकलेगा।
नाम बड़ा होगा जिस दिन भी,
खोटा सिक्का चल निकलेगा।
रावण-बाली बच न सकेंगे,
भाई में जो छल निकलेगा।
‘सागर’ मीठा हो ग़र तो फिर,
सहरा में भी जल निकलेगा॥
#विनोद सागर
परिचय: विनोद सागर लेखन क्षेत्र में निरंतर सक्रिय हैं। आपका जन्म ३ जनवरी १९८९ को जपला,पलामू में हुआ है। राजनीति शास्त्र में बी.ए.(आॅनर्स) करने के बाद आपकी साहित्य साधना और बढ़ गई। वर्तमान में आप एक साहित्यिक संस्था का दायित्व जपला, पलामू में ही निभा रहे हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं संकलनों में आपकी रचनाएँ सतत प्रकाशित होती रहती हैं। गंगा-गंगा (कविता-संग्रह), मुखौटा (कविता-संग्रह), त्रासदी (कविता-संग्रह), यादों में तुम (कविता-संग्रह) एवं निर्भया की माँ (कविता-संग्रह) आपके नाम प्रकाशित हैं। ‘मुखौटा’ का मराठी अनुवाद भी हुआ है। इधर,-तनहा सागर (ग़ज़ल-संग्रह), कुछ तुम कहो-कुछ मैं कहूँ (कविता-संग्रह), तथा मैं फिर आऊँगा (कविता-संग्रह) शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। कुछ वार्षिक-अर्द्ध वार्षिक पत्रिकाओं का आपने सम्पादन भी किया है। २०१४ में दुष्यंत कुमार सम्मान, २०१५ में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ सम्मान, कविश्री सम्मान, संपादन श्री सम्मान एवं झारखंड गौरव सम्मान भी २०१६ में मिला है। आपको मातृभाषा हिन्दी सहित भोजपुरी एवं मगही भाषा भी आती है। कहानी, लघुकथा, उपन्यास, गीत, ग़ज़ल, छन्द, दोहा, मुक्तक, कविता, हाइकु, क्षणिका, व्यंग्य, समीक्षा,आलेख आपके लेखन का क्षेत्र है। निवास झारखंड के जपला, पलामू में है ।
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Thu Jan 4 , 2018
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