जश्न नहीं ये गाली है…

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rajnish dube
(पाकिस्तानी कायरतापूर्ण हमले में शहीद जवानों पर)
गर उनके जैसा जश्न मनाओ,
तो फिर मुझसे कुछ बात करो।
सुकूं की रोटी खाने के बित्तल,
सरहद की मिट्टी से पेट भरो।
साल तुम्हारा बीत गया चलो
आतिशबाजी करके जाम भरो।
नशे में बनकर बेशक बाजीगर,
सड़कों पर अंधी मौज करो।
डिस्को में जाकर नृत्य करो,
या वैश्यालय जाकर दैत्य बनो।
क्या फिक्र तुम्हें उन अपनों की,
शहादतों पे उनकी कुछ अर्ज करो।
जिन सैनिक ने शंकर बनकर के,
विष के प्याले का अंतिम घूंट पिया।
शर्म करो ‘भारत के यौवन’ तुम,
उनके अहसान चुका ना पाओगे।
जैसे जश्न हैं होते सीमा पे जीत के,
कभी वैसे नववर्ष मना न पाओगे।
फिर भी अंधकार में जीने वालों,
तुम सबकी खुशी में ये कुर्बानी है।
खा जाते हैं वो गोली आँख मूँदकर,
कहो ये शहादत है या बेमानी है।
फिर भी ‘रजनीश’ कहे तुमसे ये,
वो सरहद वाले तो जीवनदानी है।
मगर तुम्हारी नववर्ष की रीति,
मानों आज जश्न नहीं ये गाली है॥
         #रजनीश दुबे’धरतीपुत्र'
परिचय : रजनीश दुबे’धरतीपुत्र' की जन्म तिथि १९ नवम्बर १९९० हैl आपका नौकरी का कार्यस्थल बुधनी स्थित श्री औरोबिन्दो पब्लिक स्कूल इकाई वर्धमान टैक्सटाइल हैl  ज्वलंत मुद्दों पर काव्य एवं कथा लेखन में आप कि रुचि है,इसलिए स्वभाव क्रांतिकारी हैl मध्यप्रदेश के  के नर्मदापुरम् संभाग के  होशंगाबाद जिले के सरस्वती नगर रसूलिया में रहने वाले श्री दुबे का  यही उद्देश्य है कि,जब तक जीवन है,तब तक अखंड भारत देश की स्थापना हेतु सक्रिय रहकर लोगों का योगदान और बढ़ाया जाए l  

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