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कैसे मनाऊं खुशियां,
नववर्ष! तेरा मुझसे क्या नाता ?
बिलखते भूखे बच्चे रोते,
सर्द ठिठुरती माता…
सड़कों पर किलकारी सोती
लिए सपनों में सन्नाटा,
अपमानित होती हर बाला
मन जब नोंचा जाता।
जर्जर काया मां की बोली
पूत क्यों न घर लाता,
उदास खड़ा पिता दरवाजे
मन को रहा मनाता।
संस्कार हुए क्यों बेगाने
क्यों भाषा से न नाता…।
कैसे मनाऊं खुशियां,
नववर्ष! तेरा मुझसे क्या नाता॥
धरती रुखी,नदिया सूखी,
चिड़िया,कोकिल-गइया रूठी।
घुला जहर हवा में ऐसा,
जीवन भी थर्राता
भूला मन राह भी अपनी,
धैर्य भी घबराता।
अपनेपन की बातें भूली,
प्रेम-प्रीत का नाता
स्वार्थ की गठरी को बांधे,
राही तू कित जाता
सच और ईमान भी छूटे,
योग्य न काम ही पाता।
कैसे मनाऊं खुशियां,
नववर्ष! तेरा मुझसे क्या नाता॥
कहाँ गई वो पड़ोसी बातें,
कहाँ गए गिल्ली-डंडे।
गुमे आम-चने भी अब तो,
चॉकलेट-पिज़्ज़ा है ललचाता
पगडंडियां गांव की सूनी,
पीपल-बरगद रोज बुलाता
चौपालों पर हँसी-ठिठोली,
अब चौपाटी पे जगराता।
खेत बगीचे चुप-चुप से हैं,
समय मॉल में बिक जाता
साथ बैठकर खाना भूले,
भाई,भाई पर गुर्राता।
कैसे मनाऊं खुशियां,
नववर्ष! तुझसे मेरा क्या नाता॥
दे सकता है वो रिश्ते,
वो जीवन की सौगातें तू।
भागदौड़ में भूल गए जो,
मधुर चांदनी रातें तू
सुबह सवेरे नमन बड़ों को,
और संध्या की बेला
भीड़ मशीनों की लगी है,
पर मन-सा रहा अकेला।
क्या तू लौटा सकता है,
आँखों के धूमिल सपने
दूर हुए जो तनिक बात पर,
वो मेरे सम्बन्धी अपने।
तभी मनाऊं खुशियां,
नववर्ष!तब तू मुझको भाता॥
कैसे कहूँ अपनों बिन,
जीवन नहीं सुहाता।
कैसे मनाऊं खुशियां,
नववर्ष! तेरा मुझसे क्या नाता॥
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
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Mon Jan 1 , 2018
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