वक़्त की नदी से
कुछ बून्द चुरा लूँ,
पर वक़्त की नदी तो
रुकने का नाम ही नहीं लेती।
क्या वो ज़िन्दगी के सागर से
ज्यादा तेज चलती है?
फिर सोचा,तो पता लगा
वक़्त की नदी ज़िन्दगी के सागर
में ही मिलती है।
फिर क्यों वक़्त की नदी,
किसी एक छोर पर
ज़िन्दगी के सागर का
साथ छोड़ देती है।
मैंने सोचा….
#नेहा लिम्बोदिया
परिचय : इंदौर निवासी नेहा लिम्बोदिया की शिक्षा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में हुई है और ये शौक से लम्बे समय से लेखन में लगी हैं। कविताएँ लिखना इनका हुनर है,इसलिए जनवादी लेखक संघ से जुड़कर सचिव की जिम्मेदारी निभा रही हैं। इनकी अभिनय में विशेष रुचि है तो,थिएटर भी करती रहती हैं।