0
0
Read Time42 Second
इश्क़ को कुछ दिनों में,
बांधना गुनाह है।
इश्क व्यापार नहीं,
बस दिली चाह है।
पश्चिमी सभ्यता में,
दिन हैं बँधे हुए।
रिश्ते उलझनों में,
दिल है खुले हुए।
रिश्तों की मर्यादा,
यहाँ खुद से है वादा।
यहाँ तो प्यार भी,
मीरा-सा बेपरवाह है।
#शशांक दुबे
लेखक परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश) में पदस्थ हैं| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय हैं |
Post Views:
309