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सुन लो मातु पुकार,दया बरसाने वाली।
कभी शारदे मातु,कभी हो दुर्गा-काली॥
खड्ग गदा कर चक्र,सुशोभित वीणा-पुस्तक।
मानवता रक्षार्थ,काट लेती अरि मस्तक॥
सकल गुणों की खान,सृष्टि की रचनाकारा।
उद्भव अरु संहार,चराचर त्रिभुवन सारा॥
दुष्टों का कर नाश,धर्म अपनाना होगा।
अवध न जाए हार,अवधपति ! आना होगा॥
#अवधेश कुमार ‘अवध’
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