मेरी नाव चल पढ़ी थी बारिश के पानी की बहती धारा के साथl जैसे ही वो हिचकोले खाती,मेरे दिल की धड़कन भी ऊपर-नीचे हो जातीl वो थी तो कागज़ की,लेकिन उस पर मेरे विश्वास ने उसे लकड़ी जितना मज़बत बना दियाl इतनी तेज़ बारिश में भी वो बह रही थीl मेरा बेटा उसे देख तालियां बजाने लगाl उसकी आँखों की चमक,उसके चेहरे की मासूमियत,उसकी मुस्कराहट की खनक मुझे फिर लौटा लाई उस बचपन की दुनिया में,जहाँ शायद अपने बेटे की जगह में उस कागज़ की नाव को देखकर ख़ुशी से झूम उठा थाl एक पल में बचपन की उन अनोखी यादों को फिर से जी लिया थाl उस बेफिक्र दुनिया से लौटा तो देखा कि,हमारी कागज़ की नाव आँखों से ओझल होगईl मेरा बेटा यह सब देखकर उदास हो गयाl उसके चाँद से चेहरे पर मीठी-सी मुस्कान आँखों से आंसू बन बह निकलीl उसके मासूम चेहरे को देख में एक बार फिर बचपन की उन यादों में खो गया,जहाँ मेरी आँखें भी इसी तरह नम थीl अपनी कागज़ की नाव को खोकर अपने बेटे को समझाने के लिए मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसे समझाया कि,बेटा ये तो ज़िन्दगी है,उलझनें तो आएंगी हीl ठीक उसी तरह मैंने उसे समझाया,जैसे मेरे उदास होने पर मेरे पिता ने मुझे समझाया थाl हमारी कश्ती भी कमज़ोर थी,जो पानी के भंवर में उलझ गई और अपनी मुश्किलों को पार नहीं कर पाईl उसने अपनी मासूम आवाज़ में मुझसे कहा-पापा चलो, अपनी नाव को इन उलझनों के पार ले चलते हैंl उसने फिर उसी मासूमियत से एक और नाव बना ली,लेकिन इस बार कागज़ की नहीं, पेड़ की पत्तियों से,जो पानी में डूबी नहीं,बल्कि उसके बहाव के संग बहती रहीl उसने अपना तरीका बदल लिया,पर अपना इरादा नहींl और फिर ऐसी नाव बना ली जो उलझनों के पार चल जाएगीl अपने किनारे को पा जाएगीl फिर नई लहरें आकर उसे किसी और देश ले जाएगी और फिर वो चली जाएगी उलझनों के पारl
#शिवानी गीते
परिचय: लेखन में शिवानी गीते का उपनाम-वाणी है। इनकी जन्मतिथि-३ अगस्त १९९७ तथाजन्म स्थान-खरगोन(मध्यप्रदेश)हैl आप वर्तमान में इंदौर में निवासरत हैं। शिक्षा-बीए(पत्रकारिता एवं जनसंचार) है तो पेशा यानी कार्यक्षेत्र भी पत्रकारिता ही हैl लेखन के नाते ही समाज से जुड़ाव है। दैनिक अखबार में कविता प्रकाशित हुई है तो उपलब्धि यही है कि,प्रसिद्ध समाचार वेब पोर्टल पर लेख लगे हैं। इनके लेखन का उद्देश्य दूसरों तक अपने विचार भेजना एवं समाज में हो रही गतिविधियों की आमजन को जानकारी देना है।
बहुत खूब बिटिया शिवानी ।