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गरीबों का पुल होता है,अमीरों का `उड़न पुल`(फ्लाई ओवर)। पुल का इस्तेमाल गरीब लोग भी कर लेते हैं और अमीर भी। ठंड में `उड़न पुल` फैल जाते हैं और गरीब सिकुड़ जाता है। गरीब की सिकुड़न बढ़ जाती है और गरीबी पुटपाथ से खिसककर `उड़न पुल` के नीचे आ जाती है।
पुलों का निर्माण नदी के दो किनारों को जोड़ने के लिए होता है,बड़े शहरों की बड़ी बात कि,`उड़न पुलों` का निर्माण रास्ता छोटा करने और गरीबी को ढंकने के लिए किया जाता है। शहर में पुलों को `फ्लाईओवर` कहा जाता है जो नदी के किनारों को नहीं जोड़ती,बल्कि गरीबी और अमीरी को जोड़ने का माध्यम है। गरीबी `उड़न पुल` के नीचे और अमीरी `उड़न पुल` के ऊपर होकर गुजरती है।
ठंड में पुलों की महत्ता बढ़ जाती है। नशेड़ियों के लिए, गरीबों के लिए,नगरपालिका के लिए,जैसे ही ठंड बढ़ने की खबर रेडियो से आने लगती है,नगर पालिका सक्रिय हो जाती है। पिछले कुछ सालों में झोपड़ियों में आग लगना बंद-सा हो गया है। जबसे लोगों ने घर जलाकर हाथ सेंकने की अनिच्छा जाहिर की,तबसे सरकार ने ठंड के दिनों में झोपड़ियों को जलाना बंद कर दिया। हर किसी काम में सरकार ही दोषी होती है,इसलिए मान लिया जाता है कि सरकार ही गरीब और गरीब की झोपड़ियां जलाने के लिए जिम्मेदार है।
सरकार अब जवान हो गई है,जवानी में गलत-सही की पहचान समाप्त हो जाती है। यही हालत सरकार की है। उसे ठंड और गर्मी का अहसास नहीं होता है। सरकार उस संस्था का नाम है,जिसमें दिल नाम की चीज नहीं होती,इसलिए उसे गरीब और गरीब की झोपड़ियां नहीं दिखाई देतीं। उसे तो कुछ करना है,ऐसा करना है जिससे कुछ बौखलाहट हो,पीड़ा हो, संवेदनाओं के आदान-प्रदान का माहौल बने,सरकार की कारवाई सुर्खियों में आए।
सरकार ने बढ़ती ठंड को देखते हुए दिल्ली में जमना के पास पुलों के नीचे गरीबों की झोपड़ियों को बुलडोजर से गिरा दिया। गरीब और गरीबी सड़क पर थी,और अब वह सड़क के बीचों-बीच आ गई। सरकार की मंशा साफ है,उसने जो रैन बसेरे बनाए हैं उसका उपयोग भी होना है। गरीब का झोपड़ियों में रहना सरकार को नागवार गुजरा। कुछ लोग पुटपाथ पर सोए पड़े लोगों को कंबल उड़ाकर अपनी कुत्सित भावनाएं दर्शा रहे हैं,वहीं सरकार कितनी रहमदिल है,जो ठंड की ताजगी भरी हवा में बच्चों को पेट में पैर घुसेड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। जब भूख लगती है,तो गरीब घुटने पेट से चिपका लेता है और जब भूख के साथ-साथ जोर की ठंड लगती है,तब घुटनों को पेट में घुसेड़ लेता है। ठंड में धन्य हो जाते हैं। अपार्टमेंट के बाहर स्थाई दीवार बना देते हैं,जिस पर गरम कपड़े से लेकर साफ-सुथरे कच्छा-बनियान भी टंगे होते हैं,गरीबी आए और अपने लिए कच्छा चुन ले। सरकार चुनाव में कच्छा भी नहीं देती,न कच्छा पहनने का आश्वासन देती है,सरकार कच्छ की बात करती है,लेकिन गरीब के कच्छे की बात नहीं की। ठंड में घरों में गरम `एसी` चल पड़े हैं,ठंडे `एसी`,ठंडे बस्ते और सरकार का त्वरित कार्यबल झोपड़ियों की तलाश में बुलडोजर के साथ घूम रहा है। ठंड में गरीबी बुलडोजर देखकर गर्मी का अहसास पाती है।
संसद मार्ग पर ठंड नहीं लगती हैl कुछ अमीर अखबार बिछाकर जमीन पर सोते हैं। रिजर्व बैंक के नोटों की गर्मी और अखबार की खबरों की गर्मी में कब गरीबी को नींद आ जाती है,पता ही नहीं चलता है। संसद मार्ग पर गरीबी वाई- फाई की तरह होती है,जिसे आप रात को नौ बजे के बाद महसूस कर सकते हैं,लेकिन देख नहीं सकते।
मानवीयता समाप्त न हो जाए,इसलिए सरकार इस तरह की कार्रवाई करती रहती है। लोगों की संवेदना को लौ देने के लिए भी इस तरह कार्य किए जाते रहे हैं। सरकार २०५० तक मकान बनाने जा रही है,तब तक इन झोपड़ियों में रहने वालों को खुले में सोने की आदत के लिए इस तरह के ठोस कदम उठाना जरूरी हो गया है। `उड़न पुलों` के नीचे तेज एलईडी के बल्ब लगाकर तेज रोशनी की जाने लगी है, ताकि गरीब और गरीबी को दूर से ही खदेड़ा जा सके।
सरकार चल रही है,झोपड़ियां भी बुलडोजर के सहारे चल पड़ी हैं। आदमी और आदमियत अपनी जगह पर खूंठे से गड़ी है।
#सुनील जैन ‘राही'
परिचय : सुनील जैन `राही` का जन्म स्थान पाढ़म (जिला-मैनपुरी,फिरोजाबाद ) है| आप हिन्दी,मराठी,गुजराती (कार्यसाधक ज्ञान) भाषा जानते हैंl आपने बी.कामॅ. की शिक्षा मध्यप्रदेश के खरगोन से तथा एम.ए.(हिन्दी)मुंबई विश्वविद्यालय) से करने के साथ ही बीटीसी भी किया हैl पालम गांव(नई दिल्ली) निवासी श्री जैन के प्रकाशन देखें तो,व्यंग्य संग्रह-झम्मन सरकार,व्यंग्य चालीसा सहित सम्पादन भी आपके नाम हैl कुछ रचनाएं अभी प्रकाशन में हैं तो कई दैनिक समाचार पत्रों में आपकी लेखनी का प्रकाशन होने के साथ ही आकाशवाणी(मुंबई-दिल्ली)से कविताओं का सीधा और दूरदर्शन से भी कविताओं का प्रसारण हुआ हैl आपने बाबा साहेब आंबेडकर के मराठी भाषणों का हिन्दी अनुवाद भी किया हैl मराठी के दो धारावाहिकों सहित 12 आलेखों का अनुवाद भी कर चुके हैंl रेडियो सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 45 से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएं प्रसारित-प्रकाशित हो चुकी हैं। आप मुंबई विश्वद्यालय में नामी रचनाओं पर पर्चा पठन भी कर चुके हैंl कई अखबार में नियमित व्यंग्य लेखन जारी हैl
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