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आज फिर खाली हाथ ही लौटा हूं..
गले लगा पत्नी को मैंने धीरे से उसके कान में बोला …
मुस्कुराकर वो पलटी और मन्दिर में दीप जलाने लगी …
चाय लेकर के आई पास वो और
बच्चों संग लाड़ लड़ाने लगी..
बडी़ उम्मीद से भरी थीं उसकी आँखें..
धैर्य धर वो बोली-जब तक तुमको नहीं मिलती अनुकूल नौकरी,
तब तक मैंने पास के स्कूल में कर ली
शिक्षक की नौकरी…
शाम को कुछ टयूशन कर लूंगी..
आप अपने सपनों को मत मरने देना…
जो चाहिए वो पाकर ही कदम आगे बढ़ाना…
चाहत मेरी तुम हर सपने को पूरा करो…
मैं तुम्हारी प्रतिछाया बन तुम्हारे साथ हूं,
उमंगित स्वर और सही दिशा ने मुझको
आल्हादित किया …
कुछ महीनों की मेहनत से मैंने
अनुकूल व्यवसाय जमा लिया,
पत्नी को एक पालना घर खुलवा दिया…
खुश हो वो बच्चों में भगवान का रूप देखती है,
दो आया और दो शिक्षक रख वो काम बढ़ा रही…
और मुझे भी जब-तब मानसिक सम्बल पहुंचा रही…
जीवनसाथी मेरी सिर्फ नाम की नहीं,
जीवन और शरीर का अहम,
आधा हिस्सा बन सहभागिता निभा रही।
#नमिता दुबे
परिचय : लेखन के क्षेत्र में नमिता दुबे अब नया नाम नहीं है। समाजशास्त्र में एमए करने वाली नमिता दुबे हाउस वाईफ के साथ ही सौन्दर्य विशेषज्ञ भी हैं। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान लिखना शुरु किया था,जो निरंतर जारी है। दैनिक समाचार पत्रों में रचनाएं नियमित रुप से छपती रही हैं। पति के हैदराबाद में शिफ्ट होने के बाद पुनः लिखना शुरु किया है। हैदराबाद के कुछ समूहों और साहित्य समिति में कविता पाठ भी करती हैं। काव्य के साथ लेख और कहानी भी लिखती हैं। फिलहाल आप हैदराबाद में रहती हैं।
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बहुत सुंदर