(राष्ट्रीय प्रेस दिवस विशेष)
भारत जीवंत और विशालतम लोकतंत्र है। यह मात्र राजनीतिक ददर्शन ही नहीं है,बल्कि जीवन का एक ढंग और आगे बढ़ने के लिए लक्ष्य है। इसी गुंजायमान लोकतंत्र का त्रिनेत्र पत्रकारिता में आलोकित है। अभिभूत,प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा कि,आज समाचार-पत्र सिर्फ खबर ही नहीं देते,वे सोच को गढ़ते हैं और दुनिया के लिए खिड़की खोलते हैं। सही मायनों में पत्रकारिता समाज को बदलने का साधन और आम जनता की ताकत है। लिहाजा,जनशक्ति के आधार स्तंभ लोकतंत्र की मजबूती के वास्ते स्वतंत्र,निष्पक्ष और साहसिक पत्रकारिता आवश्यक ही नहीं,अपितु बेहद जरूरी है। दृष्टिगत् मौजूदा हालातों पर गौर फरमा लेते हैं।
समाचार माध्यम दैनिक जीवन के अनिवार्य अंग होने के साथ समाज का वास्तविक थर्मामीटर भी हैं,जिसमें सामाजिक और लोकतांत्रिक वातावरण का तापमान परिलक्षित होता है। इन्हें दूरबीन कहा जाए तो,अतिशयोक्ति नहीं होगी,क्योंकि वे भविष्य में होने वाली बहुत दूर-दूर की घटनाओं का आभास दे देते हैं।
सेवा ही पत्रकारिता का लक्ष्य है,पत्रकारिता आदर्शों से प्रेरित है। इसे विद्धवानों ने अभिव्यक्त करते हुए कहा कि-‘पत्रकारिता,काल धर्म की तीसरी आंख हैं।` ‘पत्रकारिता वैचारिक चेतना का उद्धेलन हैं।` ‘पत्रकारिता समाज की वाणी और मस्तिष्क है।` ‘पत्रकारिता लोकनायकत्व की सहज विधा हैं।` ‘सत्य के रस का स्रोत है।` पत्रकारिता ‘पांचवा वेद` है,जिसके द्वारा हम ज्ञान-विज्ञान संबंधी बातों को जानकर अपने बन्द मस्तिष्क को खोलते हैं।
वर्तमान समय की पत्रकारिता में पत्रकारों पर स्वामित्व का सबसे बडा दबाव है। पत्रकारिता को चर्तुथ स्तम्भ के रूप में जाना जाता हैं,दुर्भाग्यवश माना नहीं जाता है ?,जिसमें सम्पादक की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैl पत्रकारिता को एक पवित्र उद्देश्य वाला व्यवसाय माना जाता है,परन्तु वर्तमान समय में सम्पादक की भूमिका घटी है,मालिक ही अब सम्पादक पद पर सुशोभित हो रहे हैं। अगर कोई सम्पादक नियुक्त भी किया जाता है,तो उसका प्रयोग सत्ता के दलाल के रूप में किया जा रहा है। आज अखबार के संचालक जो चाहते हैं,वही जनता तक पहुॅंच पा रहा है। विज्ञापन या अर्थोंपार्जन सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो गया है,लोकतंत्र नहीं।
सम्प्रति हजारों बेजान,नीरस हास्यास्पद और ऊबाऊ समाचार पत्रों,पोर्टलों और चेनलों का ढेर लगा है। उनमें विज्ञापन के अतिरिक्त सभी सामग्री बासी ही होती है। मात्र इनके नाम ही लिखे जाएं,तो इसके लिए स्वतंत्र बृहद्काय ग्रंथ प्रकाशित करना होगा। ऐसी स्थिति में भी कुछ इने-गिने समाचार पत्र हैं,जो विश्व की गतिविधियों तथा लोकतांत्रिक ताने-बाने से सम्बद्ध होकर कंठहार बने हुए हैं।
बहरहाल,जनतांत्रिक पत्रकारिता शासक को झकझोर,नाराज और बैचेन करती है। बावजूद पत्रकारों का एक वर्ग संत्रस्त है। कहीं-कहीं पत्रकारों की हैसियत बंधुआ मजदूरों की तरह है,वे किसी की कठपुतली हैं। मालिकों के नुकसान की चिंता तथा अन्धविश्वासी में जनता की अनुरक्ति के कारण पत्रकारों की स्वतंत्रता बाधित होती है। वीभत्स `जागते रहो` का मंत्रदाता आज स्वयं किंकर्त्तव्यविमूढ़ है कि,अपनी ही बिरादरी के बहुरूपिए गिरोह से कैसे निपटा जाए ?
भेड़चाल वाहनों के आगे ‘प्रेस‘ की तख्तियां लटकाए यह वर्ग पत्रकारोचित सुविधाओं का लाभ उठा रहा है। प्रसारण और प्रकाशन उनके लिए सत्ता पाने का माध्यम है। `जो हमसे टकराएगा,खबर नहीं बन पाएगा` की धारणा वाली पत्रकारिता अपनी महत्वाकांक्षा में हांफती,हिनहिनाती,गाज फेंकती अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे जा रही है। ऐसी स्थिति में लोकपाल प्रेस परिषद् द्वारा खबरों के तोड़ने,मरोड़ने,दबाने,गढ़ने और उछालने पर अंकुश लगाना उपयुक्त है। ध्यान रहे,पत्रकारिता एक पावन अनुष्ठान है,जिसमें प्रजातंत्र के प्रति शुभेच्छु सहृदय की भूमिका ही वरेण्य होती हैl अनुपालन किया तो,पत्रकारिता गौरव दीप्त होकर कालधर्म की तीसरी आंख के रूप में लोकनायक की जिम्मेदारी बखूबी निभाएगी।
#हेमेन्द्र क्षीरसागर