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मंजिलों से दूर मुझको कर दिया है आपने,
पथ हमारा कंटकों से भर दिया है आपने।
मैं जहां एड़ी उठाकर भी पहुंच सकता नहीं,
वहां तक झुंझला के मुझको रख दिया है आपने।
झोपड़ी में रहते-रहते तीसरापन आ गया,
किस जनम की साधना का फल दिया है आपने।
जिंदगीभर पत्थरों की वंदना करता फिरुं,
क्या इसी के वास्ते ही स्वर दिया है आपने।
हस्तरेखा देखने वालों ने बतलाया मुझे,
दुख मुकद्दर में हमारे लिख दिया है आपने।
क्या जरुरत आत्मा को देह की ऐसी पड़ी,
जो अनेक बंधन में कस दिया है आपने।
आपसे बढ़कर सहारा कौन है मेरा यहां,
मुश्किलों में छोड़,फिर भी चल दिया है आपने।
#डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी ‘नीरव’
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