तेरी जुल्फों की छांव में तपती कड़क धूप भी,
झिलमिल-सी लगती है।
साथ तेरा जो हर पल बना रहे,
तो तन्हाई भी महफ़िल-सी लगती हैll
हाथों में हाथ थाम तेरा राह चलूँ,
तो राह भी मंजिल-सी लगती है।
रंगत रंगों की तुझसे ही तो है,
रंगों में तू तो शामिल-सी लगती हैll
पल-पल जो गुजर गए साथ में तेरे,
जिंदगी जगमगाई-सी लगती हैl
मुझे ईद दीवाली की खुशियों से क्या,
झलक तेरी जन्नत-सी दिखाई लगती हैll
प्यार से प्यारी बनी है तू मेरे लिए,
मुझे तो तू प्यार में ही पाई-सी लगती है।
उम्र गुजारुं तेरा अहसास बनकर,
मुझमें तो तू समाई-सी लगती हैll
तेरा झटक कर हाथ मुझसे दूर जाना,
सारी दुनिया की रुसवाई-सी लगती है।
जमाना मुझसे तुझे क्या छीन पाएगा,
मुझे तो तू खुदाई-सी लगती है।
गर ख्याल भी तुझसे बिछड़ने का आए,
वो सोच भी जगहंसाई-सी लगती है ll
परिचय: दुर्गेश कुमार मेघवाल का निवास राजस्थान के बूंदी शहर में है।आपकी जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी है। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा ली है और कार्यक्षेत्र भी शिक्षा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। विधा-काव्य है और इसके ज़रिए सोशल मीडिया पर बने हुए हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी की सेवा ,मन की सन्तुष्टि ,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है।