न समझ आने वाली
भागती लहर हूं मैं, समझ के देखो मुझे, एक सपनों का शहर हूं मैं।
प्यार दिया तो एक
हसीन पहर हूं मैं, अपमान मिलेगा तो नाश, करुंगी वो कहर हूं मैं।
मत कहो मुझे लब की प्यास,
बुझाने वाला जहर हूं मैं, मान दे के देखो मुझे हर, आग बुझा दूं वो नहर हूं मैं।
फिर भी आज बेटा-बेटी में, समझा जाने वाला एक अंतर हूं मैं, न समझ आने वाली भागती लहर हूं मैं॥
परिचय: आरती जैन राजस्थान राज्य के डूंगरपुर में रहती है। आपने अंग्रेजी साहित्य में एमए और बीएड भी किया हुआ है। लेखन का उद्देश्य सामाजिक बुराई दूर करना है।