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चंचल चितवन,खींच रही मन,कैसा चमत्कार है।
स्वर्ग अप्सरा से भी बढ़कर,तेरा ये दीदार है॥
घूंघट के भीतर से नैना,सीप मोतियों जैसे।
आधा घूंघट मुख के ऊपर,चाँद अमावस तैसे॥
बदली से छुप-छुप के रोशनी,निकले और छुप जाए,
होंठ गुलाबी लगे संतरा,जो देखे रह जाए।
दुग्ध नहाई कोई चाँदनी,ऐसा तेरा निखार है॥
स्वर्ग अप्सरा से भी बढ़कर,तेरा ये दीदार है॥
शीतल मंद सुगंध बहारें,तेरे तन से महके,
मंद मंद मुस्कान से पक्षी,खुली हवा में चहके।
आहिस्तां जब कदम बढ़ाए,पायल राग सुनाए॥
मधुर सुहाने कोयल स्वर में,मधुमासी गीत सुनाए।
कुदरत के हाथों की कला और,लगता उसका प्यार है।
स्वर्ग अप्सरा से भी बढ़कर,तेरा ये दीदार है
हरे-भरे पेड़ों का उपवन,गगन चूमती चोटी।
कल-कल झर-झर करती नदिया,ओस के बिखरे मोती।
स्वर्ग समान बिछी है चादर,अंबर जैसा आंगन।
मीत बहारें दर्द मिटाए,ऐसी है मन भावन॥
मेरे मन का मीत न कोई,ये तो बसंती बहार है।
स्वर्ग अप्सरा से भी बढ़कर,तेरा ये दीदार है।।
#शिव गोविन्द सिंह
परिचय:शिव गोविन्द सिंह का साहित्यिक उपनाम-‘सरल’ है। आपकी जन्म तिथि-४ फरवरी १९७३ तथा जन्म.स्थान-ऊँटिया (खुर्द) है। वर्तमान में मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के शहर बरेली (तहसील) स्थित विवेकानंद कांलोनी में रहते हैं। बी.ए.,एल.एल.बी सहित एम.ए. और कम्प्यूटर डिप्लोमा भी हासिल किया है। आपका कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण भारत है। आप सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय होकर कई समितियों से जुड़े हुए हैं। लेखन में आपकी विधा-वीर रस,श्रृंगार रस,करुण रस सहित व्यंग्य,कहानियां और गीत है। प्रकाशन में ‘सखी गज़ल संग्रह’ है। सम्मान में आपने मुक्तक मणि,ज्ञान भास्कर एवं साहित्य रत्न हासिल किया है। अन्य उपलव्धियों में जिला पंचायत सदस्य हैं, तथा विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से दीन-हीन की निःशुल्क वकालत का सहयोग करते हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-सामाजिक,राजनीतिक, धार्मिकता में घट रही घटनाओं पर अंकुश लगाया जाना,राष्ट्रहित में कार्य करना है।
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