थापी नही पीठ थपथपाया था गुरुदेव ने

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rajnarayan divedi

यह बात १९८० कि है मैं जब कक्षा ६वी का छात्र था । हमारे गुरुवर संस्कृत व्याकरण पढ़ा रहे थे और हम सभी पीपल पेड़ के निचे बैठकर पढ़ रहे थे । पहली घंटी मे ही गुरूजी ने कुछ पश्न दिये थे । सभी छात्रों ने हल किया और आधे घंटा में प्रश्नो उतर लिखकर  काँपी चेक कराना था ।

          मैं शाला का सबसे कमजोर विद्यार्थी था  …. पर मैं नहीं मानता था कि मैं सबसे कमजोर हूँ । हाँ कुछ विषय में मेरी कमजोरी थी इस सच्चाई को मेरा अंतःकरण स्वीकार करता था । मेरे साथीगण भी हतोत्साहित कर देते थे इसलिए यह भावना मेरे मन में आ जाता था कि मैं कमजोर विद्यार्थी हूँ । मेरे पिताजी भी बाहर रहते थे इसलिये भी कोई बात किसको बताउं समझ में नहीं आता  । मेरी माँ भी पढ़ी लिखी नहीं थी । सच कहा जाय तो मेरे जीवन में प्रोत्साहन कि कमी थी । मेरा बचपन से आदत रहा है कि पिछली पंक्ति में कभी खड़ा नहीं होता । ऐन – केन प्रकारेण कुछ तो बताउंगा । कोशिश करता था । और यह सच है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती । इसी क्रम से मैं आगे बढ़ा , सफलता मिली । स्वयं के विषय में स्थिति यह बनती थी कि मैं जिस प्रश्न का उत्तर जानता था उसके लिए भी हाथ नहीं उठाता था । उस दिन सभी छात्र अपनी अपनी काँपी लेकर गुरुजी के समक्ष खड़े थे । बारी-बारी से गुरुजी सबका काँपी चेक कर रहे थे ।
    गुरुजी ने प्रश्न पुछा ! मैंने सोचा किसी का सुनकर मैं भी कुछ बता दुंगा । पर स्थिति यह बनी की ३० छात्र मे ०३  छात्र ही हाथ उठाऐ जिसमें एक मैं भी था । एक विद्यार्थी जो शाला का सबसे तेज विद्यार्थी था । दुसरा विद्यार्थी जिसके घर गुरुजी रहते थे । अब मैं डर गया कि कहीं गुरुजी सबसे पहले मेरे से न पुछ दे । मैं क्या करुं ऐसा सोच सोच कर परेशान था । पर आत्मविश्वास यह था की कुछ तो बता दुंगा गलती सही का बिना परवाह किये बिना और हुआ भी ऐसा ही।
           गुरुजी ने सबसे पहले उस छात्र से उत्तर पुछा जिसके घर रहते थे पर वह छात्र भी सायद मेरे जैसा ही सोचा होगा  कि “किसी का सुनकर कुछ बता देगें” पासा उल्टा हो गया । वह भी कुछ नहीं बताया ।
        अब बारी मेरी थी । गुरुदेव ने मेरे तरफ देखे । मैं गुरुजी के कुर्सी से सटकर खड़ा था । गुरुदेव ने पुछा
“कर्ता का चिन्ह क्या है” झट से मेरे जुबान से निकला “को” गुरुदेव ने मेरे पीठ पर तीन थापी मारा । मैं समझा मैं गलत बता दिया इसलिए गुरुजी ने मारा । पर वह थापी नही था ….. गुरुदेव ने मेरा पीठ थपथपाया था । सही उत्तर के लिए ।
    यह संस्मरण मुझे बार-बार याद आता है । मैं गुरुदेव के चरणों नमन करता हूँ । आज मैं जो भी हूँ उन्हीं गुरुदेवों के आशीर्वाद से हूँ ।

 

#राज नारायण द्विवेदी (समाजसेवी)

* शिक्षा — स्नातक कला (प्रतिष्ठा –भूगोल)
* कार्यक्षेत्र :– छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिला – बलरामपुर, सरगुजा , सुरजपुर, कोरिया, जशपुर रायगढ़  (समाजसेवी संस्थाओं के साथ — रायगढ़ अम्बिकापुर हेल्थ ऐसोसिएशन– राहा, केयर इंडिया, युनिसेफ छत्तीसगढ़, नेशनल इंलेक्सन वाँच ,छत्तीसगढ़ वोलेंटियर हेल्थ एसोसिएशन 2001 से …..)
*  जन्म स्थान — ग्राम — हरला ,थाना — सोनहन जिला — कैमुर भभुआ (बिहार)
*  वर्तमान निवास एवं कार्यक्षेत्र — अम्बिकापुर, जिला — सरगुजा (छत्तीसगढ़)
* अभिरुचि – समाजसेवा , साहित्यिक गतिविधियां
* लेखन विधा — शोधात्मक तथ्यों का लेखन , संस्मरण लेखन , कहानी लेखन , समिक्षात्मक लेखन 
 
साहित्यिक एवं सामाजिक संगठनों से सम्बंध —
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* हिन्दी साहित्य परिषद सरगुजा — मिड़िया प्रभारी
* महामना मालवीय मिशन सरगुजा – कोषाध्यक्ष
* अरविंदो सोसायटी अम्बिकापुर – सःसचिव
* संस्कार भारती सरगुजा — मिडिया प्रमुख 

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