चंचल चितवन,खींच रही मन,कैसा चमत्कार है। स्वर्ग अप्सरा से भी बढ़कर,तेरा ये दीदार है॥ घूंघट के भीतर से नैना,सीप मोतियों जैसे। आधा घूंघट मुख के ऊपर,चाँद अमावस तैसे॥ बदली से छुप-छुप के रोशनी,निकले और छुप जाए, होंठ गुलाबी लगे संतरा,जो देखे रह जाए। दुग्ध नहाई कोई चाँदनी,ऐसा तेरा निखार है॥ […]