अनिता बचपन से ही मनमौजी, महत्वाकांक्षी और बिंदास थी। पिता ने उसे बहुत लाड़ से पाला,और समय आने पर योग्य चिकित्सक से उसकी शादी तय कर दी। डॉ.अमित को जीवन के थपेड़ों ने बचपन में ही बड़ा बना दिया था। पिता की मृत्यु के बाद माँ को सम्हालते हुए पढ़ाई करना आसान नहीं था। अमित सीधा-सादा, आधुनिकता से दूर,अपने काम से काम रखने वाला अंतर्मुखी लड़का था। अब तक उसकी दुनिया तो सिर्फ माँ तक ही सीमित थी। जब अनिता उसके जीवन में आई तो उसने उस पर असीमित प्यार और विश्वास उड़ेला। समय निकलता जा रहा था,अमित अभी अपनी एम.एस. की तैयारी में लगे होने से अनिता को ज्यादा समय नहीं दे पा रहा था।
आज अनिता अपनी शादी की पहली सालगिरह की तैयारी में जुटी थी। उसने अमित के लिए महँगी विदेशी घड़ी मंगवा ली थी। अमित भी बहुत खुश था और मन ही मन रोमांटिक डिनर तय कर चुका था। तीन बजे तक फ़टाफ़ट अपना काम निपटाकर वह घर की ओर निकल पड़ा। वह अनिता की महत्वाकांक्षा से तो परिचित था किन्तु उसके मन में उठी नफ़रत की तपन से वह बेखबर था। लाल शिफॉन की साड़ी पर खुली घुंघराली लहराती काली जुल्फ़ें उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा रही थी। अमित जैसे ही घर आया तो,अनिता की बला की खूबसूरती और बेसब्री से इंतज़ार करते देख मंत्रमुग्ध हो गया। अनिता ने जल्दी से शरबत के दो ग्लास तैयार किए। अमित बहुत खुश था,फ़टाफ़ट तैयार होकर आया। तब तक अनिता अपना शरबत ख़त्म कर चुकी थी। अमित के आते ही उसने अपने हाथों से उसे शरबत पिलाया। फिर दोनों ने मिलकर केक काटा और उपहार में अनिता ने सुन्दर घड़ी अमित को पहना दी। अमित भी कहाँ मौका छोड़ने वाला था,उसने भी हीरे के लाकेट की प्लेटिनम चेन अनिता को पहना दी।
अरे ये क्या….,अमित तो उल्टियां करने लगा था। दस मिनिट में ही कमरा उल्टी से भर गया। तीन उल्टी के बाद अमित बेहोश हो चुका था। कुछ देर बाद स्वयं को जख्मी कर अनिता पड़ोस में रहने वाली आंटी को अमित की बदसलूकी की कहानी निरीह बनकर सुना रही थी,जिस पर कोई यकीन नहीं कर सका। अमित को अस्पताल ले जाया गया,जहाँ इलाज़ के दौरान पता चला कि,उसे ज्यादा मात्रा में नींद की गोली दी गई है। आज सभी अनिता के एक और नए रूप से परिचित हुए। अमित की सज्जनता से सभी परिचित थे,इसलिए अनिता द्वारा लगाए आरोपों को किसी ने भी स्वीकार नहीं किया। यहाँ तक कि अनिता के माँ-बाप ने भी दामाद की खूबियाँ बताते हुए अनिता को समझाने का असफल प्रयास किया। बौखलाई अनिता की नफ़रत अब अपने चरम पर थी। अमित कुछ समझ पाता,उससे पहले ही अनिता ने अमित के विरुद्ध मोर्चा तान दिया। थाने में घरेलू हिंसा,प्रताड़ना और दहेज़ के प्रकरण दायर हो चुके थे। पढ़ाई छोड़ अमित अदालत और थाने के चक्करों में उलझकर रह गया था।
आज तीन वर्ष बाद पंद्रह लाख रुपए देकर आपसी सुलह से प्रकरण निपटाकर अमित घर आया,तो माँ की सूनी-निरीह आँखों से अश्रुधारा बह निकली। आखिर क्या दोष था अमित का ? वह जैसा कल था,वैसा ही आज भी है,फिर अनिता शादी के लिए तैयार क्यों हुई ? क्या अनिता की महत्वाकांक्षा से उसके माँ-बाप भी परिचित नहीं थे ? आज अमित की माँ भी इसी निष्कर्ष पर थी कि,लड़कियों की इच्छा यानी महत्वाकांक्षा का भी सम्मान करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि,माँ-बाप अच्छा योग्य लड़का देख अपनी बेटी की शादी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझें और महत्वाकांक्षा में उत्श्रंखल नदी की बाढ़ से न जाने कितने लोग हताहत हो जाएं।
#नमिता दुबे
परिचय : नमिता दुबे इंदौर की निवासी हैंl आप शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं और रचनाएं-लेख लिखने का काफी पुराना शौक रखती हैंl अभी करीब एक वर्ष से अधिक सक्रिय हैं,क्योंकि पात्र-पत्रिकाओं में इनका सतत प्रकाशन हो रहा है I