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जिंदगी कड़वी सही,शक्कर मिलाना आ गया,
ज़ख़्म पर अब तो हमें मरहम लगाना आ गया।
अब छले जाते नहीं हैं आदमी की ज़ात से,
के नज़र को भी नज़र से आजमाना आ गया।
इन अंधेरों मे गुजर जाती हमारी उम्र ही,
देखकर दम जुगनुओं का झिलमिलाना आ गया।
ले गया पतझर गुलों को,हौंसला कम न हुआ,
फिर बहारें आ गईं,गुल को खिलाना आ गया।
आँख नम होती नहीं अब,यूँ जरा-सी बात पर,
ठोकरों पर भी हमें तो खिलखिलाना आ गया।
दर्द में राहत बड़ी है आजकल तो ए ख़ुदा,
क्या किया तूने बता, के मुस्कुराना आ गया।
बेकरारी बेकली-सी अब नहीं रहती मुझे,
रातभर सोती हूँ मैं,खुद को सुलाना आ गया।
उस ख़ुदा ने बख़्श दी तौफीक हमको प्यार की,
अब हमें बंदों की नफरत को भुलाना आ गया।
फिर कभी झुकना पड़ा न आदमी के सामने,
देहरी पर जब खुदा के सिर झुकाना आ गया॥
#राजश्री तिवारी पांडे
परिचय : राजश्री तिवारी पांडे का निवास फिलहाल मध्यप्रदेश के शहर-बालाघाट में है। आपकी जन्मतिथि-२७ जून १९७६ और जन्म स्थान-नागपुर (महाराष्ट्र)है।एम.कॉम.और एलएलबी तक शिक्षित श्रीमती पांडे का कार्यक्षेत्र-गृहिणी है। सामाजिक क्षेत्र में आप काव्य समूहों और समाजसेवी संस्थानों से जुड़ी हुई हैं। आप गज़ल व दोहा रचती हैं। प्रकाशन में साझा काव्य संग्रह ‘सपनों के डेरे’ आपके नाम है तो,विभिन्न पत्रिकाओं तथा अखबारों में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। आपको शब्द शक्ति सम्मान मिला है। उपलब्धि यही है कि,अनेक काव्य गोष्ठी, स्थानीय कवि सम्मेलन और ऑनलाइन मुशायरे में कई बार शिरकत की है तो रेडियो पर भी रचना का प्रसारण हुआ है। आपके लेखन का उद्देश्य-आत्मसंतुष्टि है।
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