जब प्रात समीर के झोंकों से
मस्ती छन-छनकर आती है,
मकरन्द-गन्ध जब भ्रमित भ्रमर के होंठों को ललचाती है।
रससिक्त तुम्हारे अधरों की,
मृदु कोमलता तरसाती है।
जब पावस की रिमझिम फुहार
धरती की प्यास बुझाती है,
झींगुर की झंकार प्रबल
मन को पुलकित कर जाती है।
जब मतवाली कोयल काली,
अमराई में कुछ गाती है।
नव-किसलय-वसना यह वसुधा
नूतन वधू-सी सकुचाती है,
शीतल मदमस्त हवा जब प्रेमी
युगलों को सरसाती है।
जब मत्त अनंग की प्रत्यंचा,
मस्ती के बाण चलाती है।
जब तप्त ग्रीष्म की बोझिलता,
दुःसह पीड़ा भर जाती है
प्रचण्ड सूर्य रश्मियाँ प्रखर
घायल मन को अकुलाती हैं।
जब भरी दुपहरी में विरहिन
बांहें फैला अलसाती है,
तब याद तुम्हारी आती है।
तब याद तुम्हारी आती है॥
#अशोक कुमार गुप्ता
परिचय:अशोक कुमार गुप्ता की जन्मतिथि-८ जनवरी १९५५ तथाजन्म स्थान-इमामगंज,जिला-गया (बिहार) है। आप वर्तमान में शहर हजारीबाग में काॅलेज मोड़ (झारखंड) में निवासरत हैं। स्नातक तक शिक्षित श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र-झारखंड सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग में वन क्षेत्र पदाधिकारी (सेवानिवृत्त) रहा है। सेवानिवृत्ति के उपरांत साहित्य एवं समाजसेवा में सक्रिय हैं। आपके लेखन की विधा-कविता,गीत एवं यात्रा संस्मरण है। स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताओं का प्रकाशन हुआ है।सम्मान में कोई विशेष नहीं,पर स्थानीय स्तर पर कविताओं का सम्मान किया गया है। उपलब्धि यही है कि,दुमका जिला साक्षरता कार्यक्रम में प्रस्तुत कविता का उपयोग किया गया। आपकी दृष्टि में लेखन का उद्देश्य-व्यक्ति से समष्टि की यात्रा,एक बेहतर समाज के निर्माण में अपनी उपयोगिता की तलाश, सामाजिक विसंगतियों और विडंबनाओं को दूर करने में अपने हिस्से की लड़ाई लड़ना है।
बहुत बेहतरीन कविता!! अशोक भैया!!