पति पत्नि के आपसी सम्बन्ध ,
बिगड़ते रहते सुधरते रहते |
कभी तरेसठ का आंकड़ा ,
कभी छत्तीस का आंकड़ा हो जाते ||
इनके बीच में कभी मत बोलो ,
अपनी जीभ कभी मत खोलो |
ये दिन में लड़ते झगड़ते रहते ,
रात में दोनों फिर एक हो जाते ||
ये आपस में किल किल करते,
एक दूजे पर आरोप लगाते |
जब आपस में रूठ है जाते ,
एक दूजे को ये ही मनाते ||
पूरे जीवन यह खेल चलता रहता ,
एक दूजे को अपनी धोस दिखाते |
पत्नि मायके जाने की धोस दिखाती
पर कभी पति को छोड़ कर न जाती ||
मै तुमसे शादी करके पछताई ,
ऐसा पति किसे मिले न भाई |
जो अपनी धोस जमाता रहता ,
अपने काम भी करवाता रहता ||
पति पत्नि चक्की के दो पाट,
एक दूजे की करते है वे बाट |
जीवन में निरतंर चलते रहते ,
एक दूजे के बिन वे नहीं रहते ||
पति जब अपनी सुसराल में जाता ,
अपनी आव भगत करवा के आता |
साली को प्रेम से वह सदा बूलाता ,
फिर भी सुसराल को बुरा बताता ||
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम