मुहब्बत के चिरागों को अँधेरा चीरते देखा,
जवानों को हवा का रुख हमेशा मोड़ते देखाll
नहीं अभिशाप निर्धनता समझ जिनको ये’ आ जाए,
उन्हीं की मेघ गर्जन को गगन में गूँजते देखाll
बिना माँझी के’ भवसागर न नैया पार अब होगी,
भँवर में डूबते जन को सहारा ढूँढते देखाll
असर कुछ इस तरह छाया युवाओं पर नशे का अब,
बिना श्रम के ही’ सपनों को नयन में पालते देखाll
सफाई का चला अभियान घर तो चमचमाते थे,
गली कीचड़ सनी बेहद मनुज को हाँफते देखाll
जिसे गोदी खिलाया था वही हथियार से खेले,
कलेजे के हुए टुकड़े,पिता को मारते देखाll
घड़ी वैशाख की आई कृषक खुशहाल हो जाएं,
भरे झोली गरीबों की फसल को पूजते देखाll
कभी उम्मीद का दामन नहीं तू छोड़ना ए मन,
निराशा में भी आशा को जगत में फैलते देखाll
निरोगी ‘पूर्णिमा’ तन-मन नहीं दिखता जमाने में,
दवाओं के ही’ बलबूते पे’ साँसे थामते देखाll
#डॉ.पूर्णिमा राय
परिचय: डॉ.पूर्णिमा राय साहित्यिक गतिविधियों से सक्रियता से जुड़ी हुई हैं। आपका बसेरा अमृतसर में घुमान रोड के मेहता चौंक में है।