(आधारछंद,विधान-२२ मात्राएँ)
रहे भले ही दूर,मगर उर पास रहे,
जीवन कुसुमित पुष्प,सदा मधुमास रहेl
प्रिय कलिका सौंदर्य,बसाएँ अंतस में,
खिले अधर मुस्कान,हृदय उल्लास रहेl
सदा धीर-गंभीर,प्राप्त अवसादों को,
चलें उम्र को भूल,अधर परिहास रहेll
जुड़े हृदय के तार,विलगता विस्मृत हो,
वह है सच्चा प्रेम,जहाँ विश्वास रहेl
पंचम स्वर की तान,बनाती मतवाली,
हरपल प्रिय है पास,यही आभास रहेl
दो हो जाएँ एक,मिलन कुछ ऐसा हो,
गुंजित हो मन भ्रमर,कली के पास रहेl
विषय वासना भोग,प्रेम के अंग नहीं,
यही चाहते नैन,दरस की प्यास रहेl
परिचय: डाॅ. बिपिन पाण्डेय की जन्मतिथि- ३१अगस्त १९६७ एवं जन्म स्थान-ग्राम रघुनाथपुर (ऐनी-ब्रम्हावली,औरंगाबाद)है।आपउत्तर प्रदेश राज्य के शहर-सीतापुर से सम्बन्ध रखते हैं। शिक्षा-एम.ए., एल.टी. और पी-एच.डी. है। आपका कार्यक्षेत्र-पी.जी.टी.(हिंदी) में अध्यापन है। लेखन में आपकी विधा पद्य (दोहा,कुंडलिया ,गीतिका)आदि सहित छंद बद्ध लेखन है। प्रकाशन में आपके नाम-कुंडलिनी लोक( साझा संकलन) तथा दोहा संगम(संपादित) है। सम्मान के रुप में कुंडलिनी रत्न सम्मान(लखनऊ)और दोहा शिरोमणि सम्मान खटीमा,उत्तराखंड) हासिल है। साथ ही आप ‘नेट’ एवं जेआरएफ़ पात्रता धारी भी हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-स्वांतः सुखाय है।