तुम भी क्या ख़ूब पहेली हो ज़माने के लिए।ख़ुद से रुठे हुए क्यों बैठे हो तन्हाई में,
कौन आएगा यहाँ तुमको मनाने के लिए।
ग़म भुलाने की कोई और ही अब राह करें,
मयकशी राह नहीं ग़म को भुलाने के लिए।
अश्क़ पीने से तपिश और भी बढ़ जाती है,
बहने दो अश्क़ ये होते हैं बहाने के लिए।
इश्क़ जब हो ही गया है तो शिकायत क्या है,
इश्क़ होता ही है कमबख़्त सताने के लिए॥
#शिवकुमार बिलगरामीपरिचय : शिवकुमार बिलगरामी आज के दौर के ऐसे गीतकार / शायर हैं,जो अपने मौलिक लेखन चिंतन के लिए जाने जाते हैं। उत्तरप्रदेश के हरदोई जिला की बिलग्राम तहसील में १२ अक्टूबर १९६३ को जन्मे शिवकुमार बिलगरामी ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया और उसके बाद दिल्ली में पत्रकारिता पेशे को अपनाकर अपने भविष्य की शुरुआत की। सम्प्रति से आप भारतीय संसद में संपादक के पद पर कार्यरत हैं। श्री बिलगरामी के गीतों-ग़ज़लों में इतनी अधिक गेयता और नयापन है कि, देश विदेश के कई गायक आज इनके गीतों-ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दे रहे हैं। आपका पहला संग्रह वर्ष २०१५ में ‘कहकशाँ'(ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित हुआ है। आपका निवास उत्तर प्रदेश के गाज़ियबाद स्थित इंदिरापुरम में है।