आक्रोश

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विद्या का मंदिर खूनी जल्लादों का बन घर बैठा,
पता नहीं,कब-कहां कौन है कालसर्प बनकर बैठा।
चीत्कार-कोहराम मचा है, हर आँख में नीर है,
प्रिय मासूम प्रद्युमन का क्यों लहूलुहान शरीर है।
मां की आंखें रो-रोकर पथराईं है,
बार-बार बाबू बेटा चिल्लाईं है।
पापा की आँखों में अंधियारा छाया,
बदहवास कलेजा मुँह बाहर आया।
जिसने भी यह खबर सुनी,उसकी भी सांसें ठहरी है,
इस वीभत्स दुर्घटना पर साजिश लगती गहरी है।
पिघल-पिघलकर हृदय आंख से धारा बन के फूटा है,
अभिभावक का आज भरोसा विद्यालय से टूटा है।
कलम रो रही, शब्द-शब्द में क्रंदन है,
आज विधाता का भी निष्ठुर-सा मन है।
जो कल का बनने वाला उजियारा था,
मम्मी-पापा की आंखों का वो तारा था।
झटके में ही आसमान के उस तारे को तोड़ दिया,
विद्यालय की असुरक्षा से बेटे ने जग छोड़ दिया।
ऐसे सारे जितने भी शिक्षा के गोरखधंधे हैं,
जितने भी स्कूल प्रबंधन बनकर बैठे अंधे हैं।
इन सारे स्कूलों की प्रामाणिकता भी सिद्ध हो,
अभिभावक भी इन स्कूलों के बिलकुल विरुद्ध हो।
चाटुकार हों शासन के,या के कोई जयचंद हो,
जिनके ऐसे स्कूल खुले हैं,वे सारे ही बंद हों।
                                          #आशुतोष ‘आनंद’ दुबे
परिचय : आशुतोष ‘आनंद’ दुबे की जन्मतिथि-२३ मई १९९३ तथा जन्म स्थान-मध्यप्रदेश का पेण्ड्रा (बिलासपुर) है। शिक्षा-एम.ए.(अंग्रेजी) सहित डिप्लोमा इन एजुकेशन, डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन और पी.जी. डिप्लोमा इन योगा साइंस है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (विश्वविद्यालय,अमरकंटक)है। जिला-अनूपपुर(मप्र)के निवासी होकर आप सामाजिक क्षेत्र में अनेक संगठनों एवं साहित्यिक मंचों के पदाधिकारी हैं। लेखन में आपकी विधा-ओज कविता है,तो राष्ट्रवादी एवं समसामयिक घटनाओं पर कविता,व्यंग्य एवं श्रृंगार पर भी कुछ प्रयास करते रहते हैं। छग प्रांत से मासिक पत्रिका में कविता का निरन्तर प्रकाशन, वेबसाइट पर कविताओं का प्रकाशन और अन्य पत्र-पत्रिकाओं में कविता का प्रकाशन होता रहता है।आपको काव्यपाठ पर श्रेष्ठ युवा प्रतिभाशाली कवि का सम्मान,विभिन्न क्षेत्रीय काव्यपाठ में सम्मान ले चुके हैं,पर श्री दुबे का मानना है कि,अभी सम्मान तुल्य कार्य शेष हैं। क्षेत्र में साहित्यिक गतिविधियों के उत्थान के लिए आप निरंतर प्रयासरत हैं,जिसका असर दिख रहा है। आपके लेखन का उद्देश्य-साहित्य प्रेम एवं राष्ट्र जागरण ही नहीं,बल्कि पाश्चात्य संस्कृति एवं आधुनिकता की आड़ में भटकते युवाओं को राष्ट्र की संस्कृति,संस्कार एवं सभ्यता के प्रति रुचि पैदा कर जोड़ना,साथ ही साहित्य के प्रति प्रेम व रुचि जागृत करना भी है।

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2 thoughts on “आक्रोश

  1. आपकी इस कविता ने मेरे दिल को झगझोर दिया।☹️

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