हिंदी के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका

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sandeep sharma
भूमिका- एक समय था जब समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। उस समय भारत परतंत्र था। समाज अशिक्षित था। चंद लोग ही शिक्षित थे। यह वह युग था जब अधिकांश लोग अपनी बात कहना तो चाहते थे किन्तु भाषा और लिखने की समस्या मुंहबांए खड़ी थी। शिक्षित वर्ग ने उनकी समस्या का समाधान किया। उनके मनोभाव और समस्याओं को समाचार पत्रों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया। विचार अभिव्यक्ति को बल मिला और देश में एक बहुत बड़ा बदलाव आया। उस समय देश में आमराय बनाने में समाचार पत्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
स्वतंत्रता उपरांत- स्वतंत्रता उपरांत देश में समाचार पत्रों के अतिरिक्त पत्रिकाओं का युग प्रारंभ हुआ। आयु वर्ग और लिंग अनुसार एवं लोकरूचि के अनुरूप पत्रिकाओं का प्रकाशन आज भी नियमित है। कहानी, कविता, लेख, व्यंग्यात्मक शैली, लोकरूचि विषय, ज्ञानात्मक आदि अनेक विषयों पर प्रकाशन हो रहा है किन्तु इतना सब होने के बाद भी समाज का एक बड़ा वर्ग अभिव्यक्ति से उपेक्षित है। कारण ? सभी समाचार पत्र-पत्रिकाओं की अपनी अलग-अलग सीमाएं हैं। गुणवत्ता है। नीतियां हैं। और फिर सभी को स्थान देना संभव नहीं है।
आकाशवाणी- समाचार पत्र-पत्रिकाओं का प्रचार-प्रसार सीमित था। आकाशवाणी के प्रसारण ने सोशल मीडिया में एक अभूतपूर्व क्रांति कर दी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि अशिक्षित और अनपढ़ जनमानस अपने कांधों से सुनी बातों पर अपनी सशक्त प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगा था। अखबार पढ़े-लिखे और आकाशवाणी सामान्य जन का सोशल मीडिया बनकर उभरा। आकाशवाणी ने अपने गौरवशाली इतिहास में हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
दूरदर्शन- सुनकर अपनी मातृभाषा में विचारों का आदान-प्रदान एक अनोखी सुखद अनुभूति थी। दूरदर्शन के जन्म के साथ ही यह अनुभूति अपने चरम पर पहुंच गई। अब सुनने के साथ साथ चित्रों के संयोजन ने हिंदी को प्रबल बनाया।
फ़िल्म-सर्वप्रथम मूक फ़िल्म और उसके उपरांत बोलचाल वाली हिंदी फ़िल्मों ने हिन्दुस्तानियों के हृदय में जो एक विशेष स्थान बनाया है उसे विदेशी फ़िल्मी भी भेद नहीं पाई है। फ़िल्मी अंदाज वाली हिंदी आज भी सभी उम्र-वर्ग में लोकप्रिय है।
सोशल मीडिया-यांत्रिक अभियांत्रिकी प्रणाली में सबसे पहले इंटरनेट की सुविधा मिली। यह सीमित लोगों तक ही रह गई। दूसरे शब्दों में शिक्षित और धनाढ्य वर्ग तक इंटरनेट ने अपनी पहुंच बनाई। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि प्रारंभिक दौर में यह सुविधा आंग्ल भाषा में ही थी। इसके उपरांत ई-मेल सेवा भी व्यावसायिक लोगों तक सीमित रही। मोबाइल युग प्रारंभिक दौर में अंग्रेजीदां था। कालान्तर में घर-घर मोबाइल पहुंचाने की इच्छा शक्ति ने निर्माताओं को एक क्रांतिकारी कदम उठाने के लिए विवश किया। वह था हिंदी भाषा का यांत्रिक प्रणाली में समुचित उपयोग।
हिंदी भाषा का की-बोर्ड- समस्त यांत्रिक प्रणालियों में हिंदी की-बोर्ड की व्यवस्था ने भारतीय जनता में क्रांति का सूत्रपात किया। यह क्रांति है अभिव्यक्ति की क्रांति। सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर यह कहने और स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि अंग्रेजी के हिंदी ने संम्पूर्ण भारत में हिन्दी को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। तब गैर-हिंदी भाषी राज्यों के निवासियों ने भी सहर्ष हिंदी को स्वीकार किया। उस समय तक अन्य भारतीय भाषाओं की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
अभिव्यक्ति- सभी यांत्रिक माध्यमों में हिंदी की-बोर्ड की उपलब्धता ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में चार चांद लगा दिए। यहां इस तथ्य का उल्लेख अत्यंत आवश्यक है कि पहले हिंदी की-बोर्ड पर काम करने में अक्षम लोगों ने हिंदी तो लिखी लेकिन उनकी लिपि देवनागरी न होकर अंग्रेजी थी। धीरे-धीरे यह चलन कम हुआ और फिर 99 प्रतिशत समाप्त हो गया। आज देवनागरी लिपि में विचारों का आदान-प्रदान होने लगा है।
विभिन्न माध्यम-आज मोबाइल फोन में ढ़ेर सारे एप हैं। वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, आदि सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। यदि प्रारंभिक दौर की बात करें तो पहले एस एम एस मिला लोगों को, फिर छायाचित्र और अतिलघु फ़िल्म के आदान-प्रदान की सुविधा एम एम एस के रूप में मिली। इनके माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान होने लगा है।
एस एम एस- एस एम एस का युग अनेक चिंताओं का कारण बन गया। इस दौर में हिन्दी का प्रयोग कम हुआ। अंग्रेजी भाषा छाई रही। भाषा का संक्षिप्तिकरण इस सीमा तक बढ़ गया कि विद्यार्थी उत्तरपुस्तिकाओं में भी एस एम एस की भाषा शैली में उत्तर लिखने लगे थे। शिक्षा जगत में इस बदलाव पर चिंता व्यक्त की गई और भाषा के समूल नष्ट होने की संभावना व्यक्त की जाने लगी थी।
वाट्स एप- मोबाइल पर वाट्स एप की सुविधा उपलब्ध होने के उपरांत सबसे बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि एस एम एस की संक्षिप्त भाषा लगभग समाप्त हो गई। हम कह सकते हैं कि इस एप के माध्यम से हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया। हिंग्लिश और अंग्रेजी में हिंदी लिखने का दौर आज लगभग समाप्त हो गया है। आंच हिंदी में अभिव्यक्ति की जा रही है।
फेसबुक- कमोवेश फेसबुक पर भी प्रारंभिक दौर में भाषा का वही हाल यह जो अन्य माध्यमों में था। आज युवा वर्ग सबसे अधिक इन एप का प्रयोग कर रहे हैं। यहां छायाचित्रों, अतिलघु फ़िल्म, पोस्टर, एवं अन्य किसी भी प्रकार की रंगीन या श्वेत-श्याम रेखाचित्रों के साथ अपने मन की बात कहने का अवसर मिला है।
                      फेसबुक पर “न उम्र की सीमा हो ना जन्म का हो बंधन” के आधार पर देश-विदेश के लोगों से मैत्री करने का अवसर मिलता है। यहां सबसे विशेष तथ्य यह है कि आज हिंदी का प्रयोग सर्वाधिक हो रहा है।
इंस्टाग्राम-इंस्टाग्राम लोकप्रिय तो है लेकिन युवा वर्ग अपने छायाचित्रों के लिए इसका प्रयोग अधिक कर रहे हैं। यहां भाषा न के बराबर है।
ट्विटर- विश्व के नेता और अभिनेता इस एप का सबसे अधिक प्रयोग करते हैं। इसके माध्यम से वह अपने अनुयायियों से संपर्क साधते हैं। ट्विटर पर अनुयायियों की संख्या लाखों में पहुंच गई है। भारतीय नेता और अभिनेता स्वयं या कभी-कभी अपने सहायक के माध्यम से हिंदी भाषा में संदेश भेजते हैं। साधारणतया शिक्षित और जागरूक नागरिक ही ट्विटर का प्रयोग करते हैं। बड़ी संख्या में अनुयाई होने के कारण राष्ट्रीय स्तर के नेता-अभिनेता सरल हिंदी का प्रयोग करते हैं।
ब्लाग-युवाओं के साथ-साथ लगभग सभी उम्र के लेखकों ने ब्लाग लेखन में अपना योगदान देकर हिंदी को एक नवीनता प्रदान की है। नवीनता इसलिए क्योंकि ब्लाग लेखन ने उन विषयों पर भी पाठक वर्ग को सामग्री परोसी जिनपर साधारणतया समाचार पत्रों, आकाशवाणी, दूरदर्शन, जैसे परंपरागत सोशल मीडिया पर खुलकर चर्चा नहीं होती। हिंदी के माध्यम से आज महिला वर्ग अपनी अनकही समस्याओं का समाधान पा रही हैं।
                       कुछ लोगों ने ब्लाग के स्तर पर सवाल उठाए किंतु यदि शुरूआती दौर को छोड़ दें तो ब्लाग का एक स्तर बना हुआ है। यह हमारी सोच का परिणाम है कि हम किसी भी वस्तु का मूल्यांकन अपने स्तर पर करते हैं। न ऊपर। न नीचे। कमोबेश यही स्थिति आलेख, कहानी, कविता, उपन्यास आदि की है।
अभिव्यक्ति मंच-सोशल मीडिया का सबसे अधिक प्रयोग युवा कवियों और लेखकों के द्वारा किया जा रहा है। उन्हें एक मंच मिला है और हिंदी भाषा को एक दिशा मिली है। आज हमारे देश में करोड़ों की संख्या में मोबाइल फोन हैं। आमतौर पर एक घर औसतन दो मोबाइल फोन हैं। यह संपूर्ण परिवार के मंनोरंजन का माध्यम बन गया है। बच्चे अपने बड़े-बुजुर्गो को चुटकुले, कविता, कहानी और अन्य रोचक ज्ञानवर्धक जानकारी सुनाते हैं। अन्य भारतीय भाषाओं के अनुपात में हिंदी भाषा का प्रयोग सबसे अधिक हो रहा है।
व्यावसायिकता- मनुष्य को जीवित रहने के लिए कुछ न्यूनतम आवश्यकताओं की जरूरत होती है। ठीक वैसे ही किसी भी व्यवसाय को गति-प्रगति देने के लिए भाषा पर पकड़ अत्यंत आवश्यक है। आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बाजार है। बाजार की प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए हिंदी में प्रचार-प्रसार समय की मांग है। कोई भी उत्पादन कितना ही गुणवत्तापूर्ण क्यों न हो ? उसको बाजार तभी मिलेगा जब हिन्दी में विज्ञापन होंगे। दिल्ली लघुभारत है। यहीं से उत्पाद और उत्पादन प्रभावित होता है। हिंदी की बिंदी व्यापारी की चांदी।
रोजगार- सोशल मीडिया ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है तो साथ-ही-साथ रोजगार के अवसर भी प्रदान किए हैं। आज से लगभग पच्चीस वर्ष पहले हिंदी के प्रतिष्ठित विद्वानों की सेवाएं लेकर देसी उद्योगपति उत्पादों की नुमाइश अखबरों, पत्रिकाओं और दूरदर्शन के माध्यम से करके प्रसन्न हो लिया करते थे।
                   बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने के बाद सोच बदली। रोजगार के नये अवसर पैदा हुए। सोशल मीडिया अपने दादा-दादी और पोते-पोतियों सहित नवांकुरों की सेवा कर हिंदी की उन्नति चार चांद लगा रहा है।
मतभेद बनाम मनभेद-
                   समय परिवर्तनशील है। उसे न तो थामा ज सकता है और न नियंत्रित किया जा सकता है। सोशल मीडिया ने हिंदी की दुर्गति को समाप्त कर ऐसी प्राणवायु फूंकी जिससे हिंदी भाषा की रूग्णावस्था का इलाज हो गया है। लेकिन मैं यहां मतभेद बनाम मनभेद के माध्यम से यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि सत्रहवीं लोकसभा चुनाव के दौरान कुछ देशवासियों ने जिस शब्दावली का प्रयोग किया उससे मतभेद मनभेद में बदलते हुए दृष्टिगोचर होते हैं। सोशल मीडिया एक पारिवारिक संगणनक है। उसकी पवित्रता बनाए रखना हम सभी का दायित्व है।
उपसंहार-
                  हिंदी की बिंदी और उर्दू का नुक्ता भाषा की पकड़ को समृद्ध बनाता है। निश्चित रूप से सोशल मीडिया ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है लेकिन जनमानस को हिंदी की बिंदी और उर्दू के नुक्ते में महारत हासिल करनी होगी। शायद तभी हम गर्व से कह सकेंगे कि सोशल मीडिया ने अपना दायित्व पूर्ण किया।
#डॉ संदीप कुमार शर्मा
नयी दिल्ली

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।