`हिंदी दिवस` के अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जो संदेश दिया है,यह मुझे ऐसा लगा,जैसे कि मैं ही बोल रहा हूं। उन्होंने राष्ट्र को वह सूत्र दे दिया है जिसे लागू कर दिया जाए तो जो बेचारी हिंदी राजभाषा बनकर हर जगह बेइज्जत हो रही है,वह सचमुच `भारत की राष्ट्रभाषा` बन जाए। यदि वह राष्ट्रभाषा बन जाए तो,वह सही अर्थों में राजभाषा तो अपने-आप बन ही जाएगी। राष्ट्रपति ने कहा है कि,-हिंदीभाषी लोग अन्य भारतीय भाषाओं का सम्मान करें तो हिंदी की स्वीकृति बढ़ेगी। यह मंत्र है। यह सूत्र है,हिंदी को सर्वस्वीकार्य बनाने के लिए,लेकिन हमने ही इस मंत्र को भुला दिया है। त्रिभाषा सूत्र के अंतर्गत अहिंदीभाषियों ने हिंदी सीखी,लेकिन हिंदीभाषियों ने तमिल,तेलगू,कन्नड़ नहीं सीखी।अंग्रेजी को तो सभी पर लाद दिया गया। यदि हिंदीभाषी छात्र अन्य भारतीय भाषाएं सीखते और छात्रों पर सिर्फ अंग्रेजी लादेन की बजाय अन्य विदेशी भाषाएं सिखाई जातीं तो,भारत अभी तक महाशक्ति बन जाता,राष्ट्रीय एकता मजबूत होती,हमारा विदेशी व्यापार चौगुना हो जाता,हमारी कूटनीति अपूर्व रुप से सफल होती,हम एक आधुनिक और शक्तिशाली राष्ट्र बन जाते,लेकिन ७० साल से चल रही हमारी दोषपूर्ण भाषा नीति के कारण देश का बहुत नुकसान हो रहा है। हमारे नेताओं में ज्यादातर लोग विचारशील नहीं होते। वे भाषा-समस्या पर अपना कोई तर्कसम्मत विचार नहीं रखते। वे तो मूलतः कार्यकर्ता होते हैं या उन्हें कुर्सियां विरासत में मिल जाती हैं। एक बार उन्हें कुर्सी मिली नहीं कि वे रोज़ उपदेश झाड़ने लगते हैं। वे अपने आप को महापंडित समझने लगते हैं। कहा भी गया है कि,‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होते सुजान।` इन सर्वज्ञ लेकिन जड़मति नेताओं को राष्ट्रपति के संदेश से कुछ सबक लेना चाहिए। उन्हें हिंदी-हिंदी चिल्लाने की बजाय ‘भारतीय भाषाएं लाओ’ का नारा लगाना चाहिए और उसके साथ ‘अंग्रेजी हटाओ’ का भी। ‘अंग्रेजी मिटाओ’ का नहीं। स्वेच्छा से आप जो भी विदेशी भाषा सीखना चाहें,जरुर सीखें। इधर तीन-चार दिन से मैं मुंबई में हूं। अमिताभ बच्चन,आमिर खान,अक्षयकुमार आदि फिल्मी सितारों तथा कई फिल्म-निर्माताओं से मेरी भेंट हुई। उन्होंने मेरे विचारों का समर्थन किया। इस्काॅन मंदिर में आयोजित हिंदी दिवस समारोह में मुंबई के सैकड़ों भद्रजन ने अपने हस्ताक्षर अंग्रेजी से बदलकर हिंदी या अपनी मातृभाषा में करने का संकल्प लिया। मैं राष्ट्रपति कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी आशा करता हूं कि वे भी अपने हस्ताक्षर सदा हिंदी में ही किया करेंगे। सरसंघचालक मोहन भागवतजी ने अपने बेंगलूरु अधिवेशन में मेरा नाम लेकर सारे स्वयंसेवकों से कहा था कि,वे अपने हस्ताक्षर स्वभाषा में करें और इस आंदोलन को सफल बनाएं।
#डाॅ. वेदप्रताप वैदिक