संत

0 0
Read Time3 Minute, 12 Second

वसुधैव कुटुम्बकम की जो पहचान हमारी है वह हमारे संत महात्मा की देन है। सर्वसजन हिताय सर्व जन सुखाय की परम्परा जो संतो मनीषियो ने बनाई वो हमारी सभ्यता का मूल स्तम्भ है। जिसका वर्णन संत कबीर, तुलसीदास रविदास, महर्षि वाल्मिकी, वेदव्यास ने अपने अपने समय में ज्ञान दिया है। जिससे प्रेरणा हमेशा मिलती रहेगी।

आधुनिक भारत में भी संतो सन्यासी की महत्ता कम नहीं हुई है आज भी लोग संतो को आदर भाव से ही देखते है।हाँ कुछ ऐसे ढोंगी संतो ने बदनाम अवश्य किया है जिससे कुछ भ्रामक स्थितियां उत्पन्न हुई है। आदि काल में भी कुछ असुर शक्ति होते थे जो संतो को प्रताड़ित किया करते थे।आज उसकी जगह मानव ने ले रखी है जो साधु संतो को प्रताड़ित तो करते ही है हत्या जैसे जघन्य अपराध भी कर डालते हैं जो वीभत्सता और क्रूरता की पराकाष्ठा है।महाराष्ट्र में विगत दिनों संत की क्रूरतापूर्ण हत्या ने वीभत्सता की सारी सीमाएँ तोड़ दी।वह और भी हृदयविदारक तब हुआ जब पुलिस की मौजूदगी भी देखी गयी।महज राजनीति का केन्द्र बनाकर ऐसे निर्दोष हत्याएँ हमारी वसुघैव कुटुम्ब की सभ्यता पर एक प्रहार है जिसे वर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।कानून और प्रशासन का लचीलापन रवैया इसे गुनाहगारो को प्रसय न देकर कठोर कार्रवाई की ओर बढ़े ऐसा भी अभी तक प्रतीत नही हुआ है।अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि आखिर मंशा क्या है ।पालघर की घटना के बाद भी संतो की हत्या का सिलसिला जारी रहना सरकार और प्रशासन की विफलता की कहानी कह रही है जिस पर आने वाले समय में जबाबदेना होगा।चंद असुर को पालकर कोई सरकार नही चलाती जा सकती संतो को हर हाल में इंसाफ चाहिये और सरकारो को देना होगा उनकी सुरक्षा।इतिहास गवाह है संतो को प्रताडित कर कोई खुश नही रहा है।

आज महाराष्ट्र के चंद असुरी प्रवृत्ति के लोगो और राजनीतिज्ञो को समझना होगा कि संत सही मायने मे हमारी संस्कृति की विरासत हैं। जिसके बिना सनातन धर्म का उत्थान संभव नहीं।जिस प्रकार शिक्षक ज्ञान बाँटते है उसी प्रकार संत संस्कृति और भक्ति बाँटकर हमें जीवन के मूल सत्य से परिचय कराते हैं।
आशुतोष
पटना बिहार

matruadmin

Next Post

सुरक्षा

Fri Jun 12 , 2020
विकट बहुत ही समय है धैर्य रखिए अपने पास उचित दूरी बनाकर रखिए जब मिलने आए कोई पास गले मिलने का दौर गया आ गया अब एक दौर नया हाथ जोड़ नमस्कार करो सम्मान सबका दिल से करो अपनी सुरक्षा स्वयं ही करिए मास्क चेहरे पर लगाकर रखिए सावधानी बरती […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।