इस फ़रेबी दुनिया से बचना जरूरी हो गया है,
लग रहा है सूर्य-सा जलना जरूरी हो गया हैl
रात है ग़म से भरी और संग दौर-ए-ज़ाम है पर,
ऐसा लगता प्यार का मिलना जरूरी हो गया हैl
कट रही है ज़िन्दगी भी अपनी कुछ तन्हाईयों में,
अब गिरूँगा इश्क में,गिरना ज़रूरी हो गया हैl
इस क़मर की चाँदनी में दिख रही तस्वीर किसकी,
लग रहा है अब पता करना ज़रूरी हो गया हैl
बाद और बादल भी देखो हैं नहीं ये होश में तो,
अब चलूँगा घर को मैं,चलना जरूरी हो गया हैl
#पुनीत मिश्र
परिचय: पुनीत मिश्र लेखन में उपनाम-मधुर का उपयोग करते हैंl आपकी जन्मतिथि-११ दिसंबर १९९८ व जन्मस्थान-गोला गोकर्णनाथ हैl बी.एस-सी. करने के बाद आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षा ही हैl आप उत्तर प्रदेश राज्य के शहर गोला गोकर्णनाथ(लखीमपुर खीरी) में ही रहते हैंl आप गीत,ग़ज़ल एवं मुक्तक रचने के अभ्यस्त हैंl कुछ पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं तो,अॉनलाइन कवि सम्मेलन में `काव्य भूषण` सम्मान मिला हैl आपके लेखन का उद्देश्य- शौक एवं हिन्दी भाषा को समाज में जागृत रखना हैl