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बाप धूप में,माँ चूल्हे में रोज जलती है,
तब कहीं औलाद मुश्किल से पलती है |
बड़े होकर कहे,क्या किया है तुमने हमारा ,
यही बात माँ बाप को हमेशा खलती है |
करते है काम माँ बाप सुबह से शाम,
तब कही गृहस्थी की रोटी चलती है |
हो जाती हैअलगऔलाद शादी के बाद,
यही बात तो माँ बाप को खूब खलती है |
कर न बैठे कुछऔलाद गुस्से में आकर,
कभी कभी ये बात मस्तिष्क में पलती है |
और क्या लिखे रस्तोगी,औलाद के बारे में ,
यह सोच कर कलम भी न उसकी चलती है
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम
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