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भगवान और भक्त के बीच काठ का नहीं,आस्था व विश्वास का अटूट नाता है। श्रद्धा के इस पावन रिश्ते में हैवान का क्या काम?,पर नहीं हैवान तो भगवान से बढ़कर है। भगवान के दर पर इनकी जीती-जागती प्रतिमूर्ति नजर आती है। आस्था के नाम पर धर्म के बिचौलिए बन बैठे बाबानुमा पाखंडी और मतलबी हैवानियत से वशीभूत साधु-संत,मुल्ला-मौलवी, पादरी,महंत और अवतार अपनी जय-जयकार कराते नहीं थकते। हॉं,हो भी क्यों न,जब तक भक्त अपने और भगवान के बीच मठाधीशों को खड़ा करेंगे,तब तक हालात ऐसे ही बने रहेंगे। दरम्यान एक बात आज तक समझ नहीं आई कि, परमात्मा से आत्मा का सीधा मिलन हो सकता है तो दूजे की क्या जरूरत। इसी अंधभक्ति से `आ बैल मुझे मार` की तर्ज पर ढोंगी रहनुमाओं को भगवान का दर्जा मिल गया। मौकापरस्ती में हैवानी बाबा जनभावनाओं से खेलकर कई निर्दोषों,नादानों और अंधविश्वासियों का खून बहा देते हैं। फलसफा रुकने के बजाए बढ़ते ही गया,उमड़ी भीड़ के जन सैलाब से गुरूघंटाल बाबाओं ने सरकारी तंत्र का बेजा इस्तेमाल कर सत्संग और पंगत के नाम पर अरबों-खरबों कमाएं। बावजूद आंखों में पट्टी बांधे उपासकों का इन बहरुपियों के आगे नतमस्तक होने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
वस्तुतः हरिशंकर परसाई ने क्या खूब कहा था, ‘इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं,पर वे सियारों के बारात में बैंड बजाते है।’ जहां तक बात है साधु की,जिसका कोई घर नहीं किसी बात का डर नहीं,दुनिया का असर नहीं,उसे सच्चा साधु कहते हैं। इतर धर्म गुरू का चोला ओढ़े दुआ-सलामती के ठेकेदार शराब,कबाब और शबाब की मौजमस्ती में मशगूल है। बेबसी दुनिया को देते नसीहत,कुछ न संग ले जाने की और खुद बने धनकुबेर,दौलत बेहिसाब लिए बैठे हैं।आभामंडल में चेले-चपाटों का लाव-लश्कर बाबाओं के रूतबे को चार चांद लगाता है। खिदमत में साध्वियों और हूर-परियों की रंगफेरियां जन्नत की सैर कराती है।
बकौल,हाल ही में बलात्कार के मामले में पंचकुला की सीबीआई अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए कैदी नम्बर १९९७ अर्थात् गुरमीत राम-रहीम इंसा के कारगुजारियां जगजाहिर है। बानगी हरियाणा के सिरसा में आलीशान मुख्य आश्रम सहित देश-विदेशों में आश्रमों का लम्बा-चौड़ा जखीरा खड़ा है। आवभगत में तथाकथित ५ करोड़ अनुयायियोंं का काफिला सजदे में है। मदहोशी में पाखंडी राम रहीम हत्या,यौन शोषण और ४०० साधुओं को नपुसंक बनाने का आरोपी है। यथा हैवानियत को इंसानियत के इंसाफ ने २० साल का `सच्चा डेरा` जेल में लगाने का हुक्म सुनाया है।
बेशर्मी में बाबागिरी के काले कारनामों की फेहरिस्त काफी लंबी है। ठगते व्याभिचारियों की कतार में बाबा ज्ञान चैतन्य पिछले १४ सालों से ३ हत्याओं के दोष की सजा काट रहे हैं। तमिलनाडु के त्रिचिरपाली आश्रम के स्वामी परमांनद १३ महिलाओं के साथ दुष्कर्म और हत्या के लिए कैद में हैं। राजीव गांधी की हत्या के आरोपित चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी अपने बड़े आश्रमों और अकूत संपत्ति के लिए जाने जाते हैं। सदाचारी बाबा अपने नाम के बिल्कुल विपरीत वेश्यालय चलाने की सजा भुगत रहे हैं। इस कड़ी में आसाराम बापू आशीर्वाद देने के बहाने लड़कियों की अस्मिता लूटने के आरोपी हैं। परम्परा को पुत्र नारायण सांई भी बखूबी आगे बढ़ाए हुए है। कवायद में संत रामपाल देशद्रोह-हत्या जैसे संगीन आरोपों के चलते जेल का दाना-पानी चुग रहे हैं।
बहरहाल,२१ वीं सदी में स्वयं-भू भगवान के सहारे तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक और अर्ज-दर्ज से भविष्य संवारना हमारी दकियानूसी सोच का घोतक है। उस पर धर्मालयों में दर्शन और निर्माण के अलावा उर्स व महोत्सव के नाम पर दान की निरकुंश जबरदस्ती आस्था को तार-तार करती है। बेहतर हो कि,निस्वार्थ और भक्तिभाव से धर्मोचार किया जाए तो सर्वहितकारी होगा, न कि बीच के हाली-मोहालियों के बदौलतl अब बागडोर हमारे हाथ में है आस्था का जय-जयकार करते हैं,या हैवानियत का हाहाकारl
#हेमेन्द्र क्षीरसागर
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Thank you sir
समसामयिक और जरुरी लेख …
ईश्वर से लाग लगाने को किसी और की विधि क्यों अपनायी जाए ? ये तो ईश्वर और भक्त के बीच की बात होनी चाहिए