तुम्हारी एक अलग पहचान है.
बैठे हो ऊपर शिखर के यही कारण है
आगे हो सबसे,पर अनिकट भी उतने हीl
मुझे नहीं भाती दूरी,
चलना इतनी गति से
कि,पीछे छूट जाएं सबl
चढ़ा था एक दफा,
पारसनाथ पहाड़ पर
देखा नीचे सब धुँधला-सा दिखा
भयभीत हूँ तब से ऊँचाइयों सेl
यथोचित है मैं पीछे हूँ,नीचे हूँ
दोस्तों से,समाज से और तुमसे भी
पीछे हूँ तभी गढ़ पाता हूँ कविता,
देख पाता हूँ दोस्तों के
दोस्ती निभाने का सलीका,
समाज कैसे झटके में
कुरीतियों को देता है हवा,
और तुम्हारी लाचार चुप्पी
दरअसल यही कारण है,
कि मैं पीछे हूँ सबसे।
नाली में सपने…,
मैं समाज का ठेकेदार बोल रहा हूँ
सुनो,
तुम निम्न जातियों के वंशज
तुम्हारे ही जिम्मे है,
नाली के मैलों की सफाई
सड़कों,सीवर-सैप्टिक टैंकों
और भी जहाँ-कहीं,
गंध जो हम फैलाते हैं,
तुम्हें ही करनी होगी साफ
तुम मरते हो तो मरते रहो,
उसके विषवायु से
विधवा होती है तो
हो जाए तुम्हारी पत्नियां,
चाहे तुम्हारी संतानें भूखमरी से
ही क्यों न मर जाए
फर्क नहीं पड़ता हमें क्योंकि,
शर्म नहीं,संवेदना नहीं हममेंl
कानून किस चिड़िया का,
नाम है हम नहीं जानते
पैंचलम्मा,श्रीलता,नागम्मा
विधवाओं तुम भी सुनो,
तुम्हारे सपने अब तुम्हारे नहीं
और इस सड़ांघ में मरना
तुम्हारी किस्मत बस,
इस जातिगत गंदगी को
कोई साफ नहीं कर सकता कभी।
मनोवृत्ति की वेश्यावृत्ति…
दुको दुको,
दुक-दुककर आनंद लो
अब,जबकि समाज थूक रहा है
ढोल-नगाड़े बजाओ,
नाचो-गाओ
अपार हर्ष मनाओ
तुम्हारी मनोवृत्ति से उपजीे वेश्यावृत्ति,
नित महाशून्य जो छू रही है||
#अजय आर. मिश्र ‘धुनी’
परिचय : अजय आर. मिश्र ‘धुनी’ झारखण्ड राज्य के धनबाद से हैं l जन्मतिथि- ७ सितम्बर १९८४ और जन्मस्थान धनबाद ही है l इंटर तक आपने पढ़ाई की है और पुजारी का कार्य करते हैं l सामाजिक क्षेत्र में आप संस्कार भारती साहित्य से जिला स्तर पर जुड़े हुए हैं l कविता रचना आपकी रूचि और विधा है l आप लेखन को जीविका का उद्देश्य बनाने के लिए अग्रसर हैं l