उसने कभी जीने की मिसाल नहीं देखी,
जिंदगी किसी कोने से खुशहाल नहीं देखीl
छुपाती रही इज्जत फटे कपड़ों की गुदड़ी में,
उस लड़की ने सही-सलामत रुमाल नहीं देखीl
लड़ते देखा है कुत्तों से बासी रोटी के पीछे,
गहरा काला निशां है उसकी आँखों के नीचेl
भूख से तिलमिलाती गुर्रा देती है अक्सर,
त्योहार देखे हैं,पर त्योहारों की थाल नहीं देखीl
उसने कभी जीने की…ll
उसे न इल्म रूह का,न वजूद का पता,
बे-गैरत मुफ़्लियत की भुगतती सजाl
फटे होंठों की खुरंट से वो कहेगी क्या,
सूनी आँखों ने खुशियाँ ख्वाबो-ख्याल नहीं देखीl
उसने कभी जीने की…ll
उसे क्या ख़बर हिन्दुस्तान किधर है,
मज़हब है कौन-सा,उसका नाम किधर हैl
ख़ामोश शक्ल की बेदखल तस्वीर-सी वो,
काली कुदरत में अरमानों की जमीं लाल नहीं देखीl
उसने कभी जीने की…ll
सुबह जगा देती है गाड़ियों की आहट,
रोशनी फुटपाथ की बन चुकी है आदतl
शोरगुल में पली वो आज पत्थर बनी,
उसने यौवन के फूलों की डाल नहीं देखी।
उसने कभी जीने की…ll
किसी दिन बेसुध छोड़ देगी जमीं को,
आवारा कुत्ते ही समझेंगे उसकी कमी को।
दुनियावाले क्या जानेंगे कौन थी वो,
रंगीन चश्मों ने कभी धूप बेहाल नहीं देखी।
उसने कभी जीने की मिसाल नहीं देखीll
#तरुण कुमार सिंह
परिचय: तरुण कुमार सिंह लेखन में उपनाम-कविराज तरुण लगाते हैंl आपका निवास लखनऊ(उत्तर प्रदेश) के कानपुर मार्ग पर एलडीए कॉलोनी में हैl आपका कार्यक्षेत्र राजस्थान के लाड़नूं में यूको बैंक में सहायक प्रबन्धक का हैl आपको लिखने का काफी शौक हैl