है नाट्यशाला विश्व यह,अभिनय अनेकों चल रहे;
हैं जीव कितने पल रहे,औ मंच कितने सज रहे।
रंग रूप मन कितने विलग,नाटक जुटे खट-पट किए;
पट बदलते नट नाचते,रुख़ नियन्ता लख बदलते।
उर भाँपते सुर काँपते,संसार सागर सरकते;
निशि दिवस कर्मों में रसे,रचना के रस में हैं लसे।
दिगदर्श जो नायक किया,पर्दे पे कब आया किया;
कठपुतलियों की डोर वह,चुपके से सरकाया किया।
भाया किया जिनको था वह,उनकी नज़र आया किया;
आयाम उनके ‘मधु’ नयन,
#गोपाल बघेल ‘मधु’
परिचय : ५००० से अधिक मौलिक रचनाएँ रच चुके गोपाल बघेल ‘मधु’ सिर्फ हिन्दी ही नहीं,ब्रज,बंगला,उर्दू और अंग्रेजी भाषा में भी लिखते हैं। आप अखिल विश्व हिन्दी समिति के अध्यक्ष होने के साथ ही हिन्दी साहित्य सभा से भी जुड़े हुए हैं। आप टोरोंटो (ओंटारियो,कनाडा)में बसे हुए हैं। जुलाई १९४७ में मथुरा(उ.प्र.)में जन्म लेने वाले श्री बघेल एनआईटी (दुर्गापुर,प.बंगाल) से १९७० में यान्त्रिक अभियान्त्रिकी व एआईएमए के साथ ही दिल्ली से १९७८ में प्रबन्ध शास्त्र आदि कर चुके हैं। भारतीय काग़ज़ उद्योग में २७ वर्ष तक अभियंत्रण,प्रबंधन,महाप्रबंधन व व्यापार करने के बाद टोरोंटो में १९९७ से रहते हुए आयात-निर्यात में सक्रिय हैं। लेखनी अधिकतर आध्यात्मिक प्रबन्ध आदि पर चलती है। प्रमुख रचनाओं में-आनन्द अनुभूति, मधुगीति,आनन्द गंगा व आनन्द सुधा आदि विशहै। नारायणी साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)और चेतना साहित्य सभा (लखनऊ)के अतिरिक्त अनेक संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं।