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कुछ समय तो रहो मेरे तुम स्वप्न में,
कुछ समय मेरे नयनों को आराम हो।
कैसे बतलाएं तुमको पुरानी कथा,
बात सबकी ही झूठी-सी इक शान है।
उनको जाना था लंका तो ये कर दिया,
राह पत्थर बिछाते ये हनुमान हैं।
रास्ते को तुम्हारे सुगंधित करुं,
फिर तुम्हारी वो मंजिल आसान हो।
कुछ समय तो रहो…॥
तुम हो पावन प्रिये और मैं पूजा करुं,
अपने मन में मुझे तुम पुजारी रखो।
गर हो रानी महलों की तुम, तो सुनो,
अपने महलों का मुझको भिखारी रखो।
तुम ही आते दिखो,तुम ही जाते दिखो,
देखना तुमको मेरा महज़ काम हो।
कुछ समय तो रहो…॥
श्वांस आरोह-अवरोह में थक गई,
तन हिमालय-सा शीतल होने को है।
जो चमकते रहे थे उमर इक यहाँ,
स्वर्ण रुप भी पीतल होने को है।
दिन गुजारो हमारी तरह यार तुम,
सामने फिर तुम्हारे ये अवाम हो।
कुछ समय तो रहो…॥
तुम चले तो गए उस नदी की दिशा,
इक कदम पर कहीं वो भी खो जाएगी।
तुम चलो तेज इतना कि मंजिल मिले,
देखना फिर वहीं शाम हो जाएगी।
भाग्य रेखाओं में तुम हमें भी दिखो,
इन हाथों में भी फिर कोई चाँद हो।
कुछ समय तो रहो…॥
तुम हो मेरी नज़र, मैं तुम्हारी नज़र,
ऐसे दोनों की दुनिया में पहचान हो।
आसमाँ को छुओ तुम सदा खुश रहो,
तुम ही आन हो,मेरी तुम्हीं शान हो।
आरती जब उतारुं मैं मन्दिर में तो,
देख के दोनों को खुश वो श्याम हो।
कुछ समय तो रहो…॥
#उज्ज्वल वशिष्ठ
परिचय : वर्तमान में छात्र जीवन जी रहे उज्ज्वल वशिष्ठ की जन्मतिथि-१ जुलाई १९९७ और जन्म स्थान-सम्भल है। आप राज्य-उत्तरप्रदेश के शहर-बदायूँ में रहते हैं। स्नातक और एल.एल.बी. कर चुके श्री वशिष्ठ अभी सिविल परीक्षा की तैयारी में लगे हुए हैं। सामाजिक क्षेत्र में जागरुकता अभियान चलाते हैं। गीत, ग़ज़ल और नज़्म लिखना पसंद है। लेखन का उद्देश्य-मन की भूख को शान्त करना और हर काव्य में एक संदेश छोड़ के लोगों को जागरूक करना है।
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Very nice…..
बहुत ख़ूब ।
उत्कृष्ट रचना भाई
धन्यवाद सर
बहुत बहुत धन्यवाद सर।
बहुत बहुत धन्यवाद सर।
खूबसूरत कृति
beinteha khubsurat.. bht mubarakbaad bhai .. behad umdaa